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Flashback 2019: 5 गायिकाएं जिन्‍होंने 2019 में भी समेट रखी है लोक गायिकी की खुशबू

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नवीन रांगियाल

बॉलीवुड के पॉपुलर हिन्‍दी गानों से इतर लोकगीतों की महक और उसकी सौंधी खुशबू संगीत में एक अलग ही मुकाम रखती है। लोक गायिकी की ठेठ देशज आवाज हर किसी को अपने प्रांत, अपने गांव और अपने पिंड लेकर जाती है। नए हिन्‍दी गानों और रिमिक्‍स के दौर में संगीत का चलन थोड़ा बदला तो है, लेकिन आज भी लोक गायिकी का कमाल और उसका जादू कम नहीं हुआ है। विवाह, विरह, विदाई और छठ जैसे मौकों पर हम इनकी तरफ लौटते ही हैं। लेकिन उसके पीछे कारण यह है कि इस बदलते दौर में भी कई गायिकाओं ने लोक गायिकी को अब तक बचाए रखा है। हम बात कर रहे हैं देश की ऐसी ही 5 लोकप्रिय लोक गायिकाओं की जिन्‍होंने अपनी आवाज और अंदाज से इसकी खुशबू अब तक समेट रखी हैं।

शारदा सिन्‍हा
शारदा सिन्हा का जन्म साल 1953 में बिहार के सुपौल के हुलास गांव में हुआ था और वे पिछले 40 सालों से गायन कर रही हैं। पिता बिहार सरकार के शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। जब पिता ने देखा कि बेटी में गायिकी के गुण हैं तो उन्‍होंने उसे निखारने का फैसला किया। इसके बाद हिन्‍दी और भोजपुरी लोक गायिकी में तो वे खासी लोकप्रिय हुईं ही लेकिन उन्‍हें उल्‍लेखनीय पहचान मिली फिल्‍म 'गैंग्‍स ऑफ वासेपुर' से। इस फिल्‍म में इंदौर की संगीतकार स्‍नेहा खालविलकर ने उनसे 'तार बिजली से पतले हमारे पिया, ओ री सासु बता तूने ये क्या किया' गवाया था। लोकगीत की खनक और महक लिए यह गाना बेहद हिट रहा। शारदा सिन्हा को भारत सरकार की ओर से संगीत नाटक अकादमी, पद्मश्री, बिहार कोकिला सम्मान दिया गया है। वे मैथिली, भोजपुरी और मगही गीत गाती हैं।

मालिनी अवस्‍थी
चैत के महीने में गाई जाने वाली चैती हो या कजरी, बुंदेली, अवधी और भोजपुरी गीत। मालिनी अवस्‍थी की आवाज में हर लोकगीत शोभा देता है। वे लोकगीतों में बेहद पॉपुलर नाम हैं। मालिनी ने लोकगीतों को बेहद हद तक प्रसिद्धि दिलाई है। उत्‍तरप्रदेश के आंचलिक गीतों के साथ ही वे ठुमरी और कजरी भी गाती हैं। मालिनी 11 फरवरी 1967 में उत्‍तरप्रदेश के कन्‍नौज में पैदा हुई थीं। उन्‍होंने 5 साल की उम्र से गाना शुरु कर दिया था। इसके बाद वे भातखण्डे संगीत संस्थान से प्रशिक्षण लेकर निकलीं तो देश में लोकगीत की आवाज बन गईं। वे बनारस घराने की पद्मविभूषण विदुषी गिरिजा देवी, पौराणिक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायिका की शिष्या हैं।

मैथिली ठाकुर
19 साल की गायिका मैथिली ठाकुर तब चर्चा में आई थीं, जब उन्‍होंने टीवी रियलिटी शो 'राइजिंग स्‍टार' में भाग लिया था। इस प्रतियोगिता में वे पहली फाइनलिस्‍ट थीं। अपनी गायिकी से उन्‍हें इस शो के डायरेक्‍ट फाइनल में एंट्री मिल गई थी, लेकिन सबसे ज्‍यादा वे हाल में अपने फेसबुक और यूट्यूब वीडियो में नजर आईं, जहां वे अपने भाइयों के साथ लोकगीत, भजन और कव्‍वाली गाती नजर आती हैं। मैथिली ने अपने हुनर से सबको हैरान कर दिया है। अब वे पूरे देश में शो कर रही हैं। फेसबुक और यूट्यूब पर उनके लाखों प्रशंसक हैं। वे लोक गायिकी में एक तेजी से उभरता नाम है।

ममता चंद्राकर
ममता चंद्राकर छत्‍तीसगढ़ की लोकप्रिय लोक गायिका हैं और उन्‍हें पद्मश्री से सम्‍मानित किया जा चुका है। उन्‍हें छत्‍तीसगढ़ की नाइंटीनएंगल यानी 'बुलबुल' कहा जाता है। इंद्रकला संगीत विश्‍वविद्यालय से संगीत में पोस्‍ट ग्रेजुएट ममता का जन्‍म 3 दिसंबर 1958 को हुआ था। वे छत्‍तीसगढ़ी लोकगीतों के साथ ही विवाह गीत, गोरा-गोरी गीत व भजन आदि गाती हैं। छत्‍तीसगढ़ समेत वे देश के कई हिस्‍सों में उनका नाम काफी लोकप्रिय हैं।

कल्‍पना पाटोवरी
कल्‍पना पाटोवरी भारतीय पार्श्‍वगायिका के साथ ही असम की लोक गायिका भी हैं। उन्‍हें 30 से ज्‍यादा भाषाएं आती हैं और वे उनमें गा भी लेती हैं। वे टेलीविजन के संगीत रियलिटी शो में भी पार्टिसिपेट कर चुकी हैं। उनके गाए हुए कई भोजपुरी लोकगीत खासे प्रसिद्ध हैं। कल्‍पना 27 अक्‍टूबर 1978 को बारपेटा में पैदा हुई थीं। बॉलीवुड में गाने के साथ ही लोक गायिका कल्पना पाटोवरी के गाए होली गीत, छठ गीत व कई ऐसे मशहूर गाने हैं, जो श्रोताओं की जुबान पर चढ़े हुए हैं।

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