इंदौर लिटरेचर फेस्टीवल में साहित्यकार और पाठक के बीच के संबंधों में सूखे को लेकर चर्चा हुई। दरअसल लेखक और पाठक के बीच रिश्ता लगातार घटता जा रहा है। यह बेस्टसेलर का जमाना है, मतलब जो जितना प्रचार करेगा उसी की किताब बिकेगी और पढ़ी जाएगी। इस बीच जो अच्छी किताबें लिखीं जा रही हैं, लेकिन वे बेस्टसेलर में शामिल नहीं है तो ऐसी किताबों का भविष्य क्या होगा। क्या यह सच है कि इससे लेखक और पाठक के बीच का संबंध खत्म हो रहा है।
- लेखक कम से कम रॉयल्टी तो दें
वरिष्ठ उपन्यासकार निर्मला भुराड़िया ने कहा कि कुछ नया और अलग हटकर दिया जाएगा, और लिखा जाएगा तो निश्चित तौर पर पाठक जुड़ेगा। जहां तक मेरे लिखे का सवाल है तो ‘गुलाम मंडी’ ने ज्यादा लोगों ने पढ़ा। मुझे तो लगता है कि पहले के मुकाबले अब पाठक ज्यादा पढ़ रहे हैं। हालांकि प्रकाशक अगर किताब की मार्केटिंग न करे तो कम से कम लेखक की रॉयल्टी तो देना ही चाहिए।
लेखक नीलोत्पल मृणाल ने कहा कि लेखक के कंटेंट से ही बाजार को पता चलेगा कि कौनसा लेखक साहित्य में टिक पाएगा और कौन नहीं टिक सकेगा। आपकी किताब का कंटेंट अच्छा होना चाहिए।
- हमारे बच्चे लिखना भूल जाएंगे
वरिष्ठ कवि लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि कम से कम प्रकाशकों को किताब के प्रचार के लिए ही काम करना चाहिए। इसलिए हिंदी में तो सत्यनारायण की कथा की किताब भी नहीं बिकती। जबकि बंगाल और मराठी भाषा में अब भी किताबें पढ़ने का चलन है। डिजिटल युग का नुकसान यह है कि कुछ साल बाद हमारे बच्चे अक्षरों की बनावट भूल जाएंगे। इसलिए बिकना ही गुणवत्ता का मानदंड नहीं है।
इस सेशन में यह सामने आया कि अगर लेखक का कंटेंट अच्छा होगा तो किताब को प्रचार की जरूरत नहीं होगी। बल्कि पाठक खुद उन किताबों तक चला आएगा।