किसी भी रचनाकार के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण होता है कि उसकी सारी रचनाएं हर अर्थ में भिन्न हों। इस दृष्टि से शहर की ख्यातनाम लेखिका ज्योति जैन की रचनाएं आकर्षित करती हैं। वे हमारे ही आसपास के परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करती हैं। भाषा,शैली और शिल्प का रचाव और कसाव ही उनकी लघुकथाओं का सम्मोहन है। उक्त विचार जाने माने उपन्यासकार और शिवना प्रकाशन के श्री पंकज सुबीर ने व्यक्त किए।
वे लेखिका ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह निन्यानवे के फेर में के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे। मुख्य अतिथि का दायित्व निभाते हुए पंकज सुबीर ने कहा कि लेखिका ज्योति जैन ने साहित्य की लगभग हर विधा में स्वयं को सुव्यक्त किया है जबकि लेखन और समाज की तमाम जिम्मेदारियों के बीच एक साथ सभी विधाओं को साधना मुश्किल होता है। लेखिका ने यह साधना बड़ी खूबी से की है।
उन्होंने लेखिका की खूबसूरत कथाओं का वाचन भी किया। पुस्तक पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ लघुकथाकार सतीश राठी ने कहा कि निन्न्यानवे का फेर में शामिल लघुकथाएं सुंदर जीवन जीने की दिशा को इंगित करती है।उनकी जीवन दृष्टि उच्च मानवीय मूल्यों को स्थापित करने की है। उनकी लघुकथा में पात्रों का प्रवेश बड़ी ही सरलता से होता है जितनी कि वे स्वयं सरल और सहज हैं। उनमें रचना के भीतर की संवेदना को पाठकों तक उसी रूप में पहुंचाने का कौशल है जिस रूप में वे स्वयं अनुभव करती हैं।
लेखिका ज्योति जैन ने अपनी लघुकथा और सृजनप्रक्रिया पर कहा कि मेरा छोटा सा लेखन संसार अपनी अनुभूतियों,परिवेश,संबंधों और समाज के आसपास आकार लेता है।मेरी लघुकथाओं ने मुझसे बहुत मेहनत करवाई है। कुछ कथानक और पात्र फोन सुनते सुनते या आटा सानते मानस में उभरते हैं और सारा काम परे रख कागज पर उतरने को बेताब हो जाते हैं और कुछ बरसों अवचेतन में सुप्तावस्था में होते हैं और सुदीर्घ प्रतीक्षा के उपरांत उचित समय पर यकायक लघुकथा के रूप में प्रकट हो जाते हैं।
पाठक के रूप में संगीतकार सलिल दाते ने भी अपने विचार रखे। वामा साहित्य मंच के बैनर तले सम्पन्न इस आयोजन के आरंभ में संगीता परमार ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।
अतिथि द्वय का स्वागत वामा साहित्य मंच की भावी अध्यक्ष अमर चड्ढा, और भावी सचिव इंदु पराशर ने किया। स्वागत उद्बोधन वर्तमान अध्यक्ष पद्मा राजेन्द्र ने किया। अतिथियों को पौधे बड़जात्या परिवार के आत्मीय सदस्यों द्वारा प्रदान किए गए। कार्यक्रम का संचालन गरिमा संजय दुबे ने किया व अंत में आभार श्री शरद जैन ने माना।