Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

साहित्य और युवा वर्ग : अपेक्षाएं और सरोकार

हमें फॉलो करें साहित्य और युवा वर्ग : अपेक्षाएं और सरोकार
देवेंन्द्र सोनी
"साहित्य जनता की चित्तवृत्तियों का संचित प्रतिबिम्ब होता है " - यह कथन है आचार्य रामचंद्र जी शुक्ल का। कितना सही कहा है आचार्य जी ने। वर्तमान में साहित्य के, युवा वर्ग के और उससे जुड़े सरोकार के अर्थ पूरी तरह बदल गए हैं। समय बदल गया है। लेखन बदल गया है और इससे अधिक युवा पीढ़ी की सोच बदल गई है। पाठ्यक्रमों से सद्-साहित्य नदारद है। पढ़ने-पढ़ाने का सिलसिला लगभग खत्म हो गया है। अब हर जरूरत के लिए " गूगल पंडित" मौजूद है। शिक्षाप्रद साहित्य का स्थान मनोरंजक साहित्य ने ले लिया है।
 
युवा ही क्यों ? हम सब भी कहीं न कहीं हल्के-फुल्के मनोरंजन की तलाश में रहने लगे हैं। स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं की प्रसार संख्या तेजी से घट रही है। रही-सही कसर हर हाथ में उपलब्ध मोबाइल, कम्प्यूटर से दुनिया मुट्ठी में आ गई है। इस मुट्ठी में क्या "बंद" हो रहा है, यह बताने की किसी को भी जरूरत नहीं है।
 
दो-तीन दशक पहले पढ़ने से ज्यादा सरल और सस्ता कोई मनोरंजन नही था। चंदामामा, नंदन, चंपक कॉमिक्स आदि हमारे ज्ञानवर्धन और मनोरंजन तथा आंनद के साधन थे, किंतु अब हम बिना पठन-पाठन के ही आंनदित और अलंकृत होना चाहते हैं।
 
गिरावट का यह दौर हमारे समाज और राष्ट्र के नैतिक परिवर्तन का कारण बनता जा रहा है, बावजूद इसके साहित्य के क्षेत्र में अनेक नाम ऐसे हैं जो अपने लेखन से समाज को दिशा देने के लिए कटिबद्ध हैं। इनका लेखन भी नई पौध को आकर्षित कर रहा है। यह भी सही है कि अब पत्र-पत्रिकाओं का स्वरूप भी डिजिटल होता जा रहा है जिसे उपलब्धि के रूप में ही देखा जाना चाहिए। "युवा वर्ग" इसका सद् उपयोग करें, अच्छा साहित्य पढ़ें, अच्छे लेखकों से जुड़ें - यह अपेक्षा तो रहेगी ही । वर्तमान में फेसबुक को इसके लिए मैं एक सशक्त मंच के रूप में देखता हूं। युवा मित्र यदि इसका बखूबी उपयोग करें और इसमें पोस्ट लेख, कहानियां, रिपोर्ताज , व्यंग्य, कविताएं पढ़कर उस पर अपने विचार लिखें, तो इससे उनकी विचार शक्ति, शब्द् कोष तो बढ़ेगा ही, लेखन के प्रति सम्मान भी बढ़ेगा और वे भी लिख पाएंगे, अच्छा लिख पाएंगे। यही उनका साहित्य और समाज से सरोकार भी होगा।
 
साहित्य है क्या ? जो समाज का हित करे, वही तो साहित्य है। हम सब जानते हैं कि हमारे अंदर उमड़ते-घुमड़ते विचारों की जब तक किसी भी रूप में अभिव्यक्ति नहीं हो जाती तब तक हम तनाव और अवसाद में रहते हैं। क्रोधित भी होते हैं तो इन्ही अंदर के विचारों, आकांक्षाओं और लालसाओं को विविध तरीके से प्रकट कर तनाव मुक्त हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ लेखन के साथ भी करें। शांत और एकाग्र मन से किसी विषय पर चिंतन करें और कागज पर उसे उतार दें, हो गया लेखन। फिर यह परिष्कृत तो धीरे-धीरे बढ़ते अध्ययन से हो ही जाता है। शुरुआत तो करें। बस इतना ध्यान रखें कि आपके सकारात्मक विचार पाठकों में ऊर्जा और प्रेरणा भरेंगे इसलिए निराशा से बचें। निराशा नकारात्मकता पैदा करती है जो हमेशा सबके लिए घातक होती है।
 
अंत में इसी अपेक्षा के साथ युवा साहित्यिक मित्रों से कहना चाहूंगा कि वे लिखने से पहले पढ़ें जरूर। और ऐसे पढ़ें, जैसे मनोरंजन के लिए पढ़ रहे हों। धीरे-धीरे जब हम उसमें रमने लगेंगे, तो ऐसा लगेगा जैसे पढ़ने से सस्ता कोई मनोरंजन नहीं और लिखने से अच्छा कोई आंनद नहीं। एक बात और, किताबों को या डिजिटल माध्यमों को मित्र, गुरु और सलाहकार बनाइए। कहा भी गया है - कि किताबें मित्रों में सबसे अधिक शांत और स्थिर होती हैं। सलाहकारों में सबसे सुलभ और बुद्धिमान होती हैं। यही नहीं, किताबें सबसे ज्यादा धैर्यवान शिक्षक भी होती हैं। इसीलिए कहा - इन्हें मित्र, गुरु और सलाहकार बनाइए। ये आपको अवसाद और तनाव से भी मुक्त रखेंगी क्योंकि आज युवा वर्ग की यह भी एक त्रासद स्थिति है।    

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

नई कविता : मर्यादा