मनोहर श्याम जोशी ने साहित्य में निरंतर रचनाशील और प्रयोगशील रहते हुए अपनी कृतियों के माध्यम से एक व्यापक जीवन-बोध का परिचय दिया है। गद्य में अपनी प्रयोगधर्मिता से उन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के आयामों का विस्तार किया है। न केवल उपन्यास और कहानियों के माध्यम से बल्कि निबंधों और साक्षात्कारों में भी उनकी बेबाक शैली को सहसा ही परिलक्षित किया जा सकता है।
जोशी जी की कृतियों का विस्तार और वैविध्य इतना अधिक है कि उनके यहां एक साथ कई साहित्य और रचना-परंपराओं का समन्वय मिलता है। अपनी समस्त कृतियों में उन्होंने भाषा और भाव-बोध के नए धरातलों का स्पर्श किया है। साथ ही उन्होंने हिन्दी में कई नये साहित्य-रूपों का भी विकास किया है। अपनी विशिष्ट शैली के कारण उन्हें हिन्दी में उत्तर-आधुनिक उपन्यासों के जनक के रूप में देखा गया है।