नर्मदा साहित्य मंथन : भारतीय परंपरा, साहित्य और इतिहास का 3 दिवसीय भोजपर्व
मां वाग्देवी के परम भक्त राजा भोज की नगरी धार में नर्मदा सहित्य मंथन द्वारा 22, 23 और 24 जनवरी को तीन दिवसीय भोजपर्व मनाया जा रहा है। इस पर्व में न सिर्फ साहित्य और इतिहास के मुद्दों पर ज़ोर दिया गया है बल्कि भारत की आंतरिक सुरक्षा और उसकी चुनौतियों को भी विशेषज्ञों द्वारा जनता के सामने प्रस्तुत किया गया।
इस पर्व में आपको भारतीय परंपरा, साहित्य और इतिहास से जुड़ी कई तरह की किताबें मिल जाएंगी, जो शायद ही किसी बाजार में आसानी से मौजूद हो। साथ ही आपको राजा भोज की प्रदर्शनी में मां वाग्देवी की सुंदर प्रतिमा, राजा भोज के समय के शस्त्र, मुद्रा, आभूषण और उस ज़माने के घर के नक़्शे भी देखने को मिलेंगे।
पहले दिन भोजपर्व की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख सुनील आम्बेकर के द्वारा मां नर्मदा के जल कलश पूजन से की गई। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि "एक आदरणीय राज्य व्यवस्था हमें राजा भोग से सिखने की आवश्यकता है। वेदों में राष्ट्र की आराधना का वर्णन है इसलिए हमारा राष्ट्र हमारे लिए सर्वोपरि होना चाहिए।"
इसके साथ ही संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि "हमने भले ही कोर्ट के हज़ारों चक्कर लगाए पर NCERT से गलत ऐतिहासिक और साहित्य तथ्यों को हटवाया क्योंकि भारत का जानने के लिए वास्तविक इतिहास और साहित्य जानना बहुत आवश्यक है।"
भोजपर्व के प्रथम सत्र में उतराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने भारत की आंतरिक सुरक्षा के विषय में कहा कि "भारत की आतंरिक सुरक्षा की सबसे बड़ी चुनौती चीन है पर गलवान घाटी हमले के बाद भारत की एकता को देखते हुए ऐसा लगता है कि देश का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। दूसरे देश हमसे बेहतर हैं ये सोचने की वजाय हम भारतियों को खुद की शक्तियों पर विश्वास करने की ज़रूरत है क्योंकि हम बाकि सारे देशों से कई गुना बेहतर है।"
जनजाति आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने तृतीय सत्र में कहा कि "हम जो किताबों में पढ़ते है वो जनजाति का सही स्वरुप नहीं है। जनजाति के बारे में जानने के लिए हमे उनके साथ रह कर व गांव जाकर अध्ययन करने की ज़रूरत है।"
इसके साथ ही राजाभोज पर आधारित जागृत मालवा पत्रिका का भी विमोचन किया गया।
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