Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

भाषाई मर्यादा की दरकार

हमें फॉलो करें भाषाई मर्यादा की दरकार
फि‍रदौस खान
भाषा का दरख़्त दिल में उगता है और जुबान से फल देता है। यानी जिसके दिल में जो होगा, वह शब्दों के जरिए बाहर आ जाएगा। किसी व्यक्ति की भाषा से उसके संस्कारों का, उसके विचारों का, उसके आचरण का पता चलता है। माना लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी है, सबको अपनी बात कहने का पूरा हक है। लेकिन कहीं अभिव्यक्ति की इस आजादी का, इस हक का गलत इस्तेमाल तो नहीं किया जा रहा है? यह समझना भी जरूरी है। भाषा शैली व्यक्ति के व्यक्तित्व का आईना है, समाज की सभ्यता का पैमाना है। आए दिन जिस तरह के बयान सुनने को मिल रहे हैं, क्या वे एक सभ्य समाज की निशानी कहे जा सकते हैं ? ताजा मामला पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सिर काटकर लाने वाले को इनाम देने के ऐलान का है।   
 
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में बीरभूम जि‍ले के सिवड़ी में हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ता हनुमान जयंती के मौके पर जय श्रीराम के नारे लगाते हुए सड़कों पर उतर आए। चूंकि पुलिस ने उन्हें जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी थी, इसलिए जुलूस को रोकने की कोशिश की गई। इस बार विवाद इतना बढ़ गया कि हाथापाई होने लगी। पुलिस ने गुस्साए कार्यकर्ताओं को काबू करने के लिए लाठीचार्ज कर दिया, इस घटना के बाद इलाके में तनाव का माहौल पैदा हो गया। इसके बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा के नेता योगेश वार्ष्णेय ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सिर काटकर लाने वाले को इनाम देने का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा कि वह खुद उसे 11 लाख का इनाम देंगे, जो ममता बनर्जी का सिर काटकर लाएगा। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि ऐसा घिनौना कृत्य किसी इंसान द्वारा किया जा सकता है। यह काम किसी हैवान द्वारा ही किया जा सकता है और हैवान को सजा मिलना अति आवश्यक है।
 
मीडिया में इस बयान के आते ही तृणमूल कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रामफूल उपाध्याय की शिकायत पर योगेश वार्ष्णेय के खि‍लाफ सिविल लाइंस थाने में मुकदमा दर्ज किया गया। खैर, बात यहीं खत्म नहीं हुई, कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम सैयद मोहम्मद नुरूर रहमान बरकती ने एक कदम आगे बढ़ते हुए योगेश वार्ष्णेय के सिर की कीमत दोगुनी कर दी। उन्होंने ऐलान किया कि योगेश वार्ष्णेय का सिर कलम करने वाले को 22 लाख रुपए दिए जाएंगे। समाजवादी पार्टी के नेता भी कहां पीछे रहने वाले थे। पार्टी के पूर्व विधायक जमीरउल्लाह ने कहा कि ऐसा बयान देने वाले की जीभ काट लेनी चाहिए। 
 
किसी का सिर काटकर लाने पर इनाम देने के ऐलान का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के भारतीय जनता पार्टी के विधायक राजा सिंह ने अपने विवादित बयान में कहा था कि जो लोग राम मंदिर बनाए जाने का विरोध करते हैं, हम उनका सिर काट देंगेअ  उन्होंने आगे कहा कि उनका यह बयान उन लोगों के लिए है, जो यह कहते हैं कि राम मंदिर का निर्माण हुआ, तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। हम उनके इस बात के कहने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि हम उनका सिर काट सकें। इसी तरह पिछले माह मध्य प्रदेश के उज्जैन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महानगर प्रचार प्रमुख डॉ. कुंदन चंद्रावत ने एक विवादित बयान देते हुए कहा था कि कोई हत्यारे केरल के सीएम का सिर काटकर ला दे, वह अपनी एक करोड़ स्र्पये की संपत्ति उसके नाम कर देंगे।
 
दरअसल, आज सहनशीलता कम हो रही है। लोग अपनी आलोचना ज़रा सी भी बर्दाश्त नहीं कर पाते। जहां कोई ऐसी बात हुई, जो उनके मन मुताबिक न हुई, या जो उन्हें पसंद नहीं आई, तो वे आग बबूला हो उठते हैं। सारी मान-मर्यादाएं ताख पर रख देते हैं और ऐसे बयान दे डालते हैं। सियासत में चाल, चरित्र और चेहरे की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी के नेता इस मामले में सबसे आगे रहते हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने ही विवादित बयान दिए हैं, इस मामले में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी आदि के नेता भी पीछे नहीं हैं।
 
भारतीय संस्कृति में महिलाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। नारी को नारायणी कहा गया है, देवी कहा गया है, लेकिन हकीकत में देश और समाज के कर्ताधर्ता महिलाओं के खि‍लाफ अपशब्द बोलने से बाज नहीं आ रहे हैं। हाल के कुछ सालों में सियासत में भाषाई मर्यादा खत्म होने लगी है। देश के प्रधानमंत्री से लेकर कार्यकर्ता तक एक ही तरह की भाषा इस्तेमाल करते मिल जाएंगे। केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार में ऐसे बयानवीरों की लंबी फेहरिस्त है, जिनके बयानों ने देश में हंगामा बरपा किया है। यह बेहद अफसोस की बात है कि सत्ता के उच्च पदों पर बैठे लोग भाषाई मर्यादा के मामले में बेहद बौने साबित हो रहे हैं। कहते हैं, पहले तोलो, फिर बोलो, यानी बोलने से पहले सौ बार सोच लेना चाहिए कि क्या बोलना है, किस तरह बोलना है. कहा गया है कि तलवार का ज़ख़्म भर जाता है, लेकिन बात का जख्म कभी नहीं भरता। 
 
बहरहाल, उच्च पदों पर बैठे वाले लोगों खास कर सामाजिक क्षेत्र में काम करने वालों को इस तरह के बयानों से बचना चाहिए। ऐसे बयानों से समाज में कटुता बढ़ती है। ऐसे बयान देश की एकता और अखंडता के साथ-साथ समाज के चैन-अमन के लिए भी खतरनाक हैं। देश और समाज में वैमन्य फैलाने वाले इन बयानों में तेजी आई है, तो इसके लिए वरिष्ठ नेता भी जि‍म्मेदार कहे जा सकते हैं, जिन पर अपने कार्यकर्ताओं को भाषा की मर्यादा व देश की संस्कृति सिखाने की जि‍म्मेदारी है। किसी भी पार्टी का कोई नेता अगर भड़काऊ बयानबाज़ी करता है, तो उस पर कार्रवाई तक नहीं की जाती। यही दूसरे नेताओं में भी उत्साह का संचार करती है। देश में भाषाई मर्यादा जिस तरह की जिस तरह से धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, उसे देखते हुए सरकार को ही आगे आना पड़ेगा और ऐसी व्यवस्था बनानी पड़ेगी, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी कहने की आजादी किसी को न दे। न तो सार्वजनिक मंचों से और न ही चुनावी रैलियों में। लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए यही बेहतर मार्ग है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कांग्रेस क्षेत्रीय नेताओं को आगे लाए