रांगेय राघव हिंदी साहित्य कथाकार, लेखक और कवि थे। वह मूल रूप से तमिल भाषी थे, लेकिन उन्होंने हिंदी में भी बहुत लिखा। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में 17 जनवरी, 1923 को हुआ।
राघव का मूल नाम तिरुमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य था, लेकिन उन्होंने अपना साहित्यिक नाम 'रांगेय राघव' रखा। उनके पिता का नाम रंगाचार्य और माता कनकवल्ली थी।
राघव बहुत कम उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन इस कम समय में भी वे अपने लेखन से कालजयी हो गए। 1942 में बंगाल के अकाल पर लिखी उनकी रिपोर्ट 'तूफानों के बीच' काफी चर्चित रही। उन्होंने जर्मन और फ्रांसीसी के कई साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया। उन्होंने शेक्सपीयर की रचनाओं का इस तरह अनुवाद किया कि उन्हें कई बार 'हिंदी के शेक्सपीयर' कहा जाता था।
अंग्रेजी, हिंदी, ब्रज और संस्कृत भाषा पर भी उनकी बहुत अच्छी पकड थी। हालांकि दक्षिण भारतीय भाषाओं, तमिल और तेलुगू का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था। वे केवल 39 साल की उम्र में ही चल गए। लेकिन तब तक उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, रिपोर्ताज सहित आलोचना, संस्कृति और सभ्यता जैसे विषयों पर डेढ़ सौ से ज्यादा किताबें लिखीं। उनके बारे में कहा जाता था कि जितने समय में कोई एक किताब पढ़ता है, उतने में वह एक किताब लिख देते हैं।
उनकी शिक्षा आगरा में हुई। उन्होंने 1944 में 'सेंट जॉन्स कॉलेज' से स्नातकोत्तर और 1949 में 'आगरा विश्वविद्यालय' से गुरु गोरखनाथ पर शोध करके पीएचडी की डिग्री हासिल की थी।
रांगेय राघव नाम के पीछे भी एक कहानी है। उन्होंने अपने पिता रंगाचार्य के नाम से रांगेय लिया और अपने स्वयं के नाम राघवाचार्य से राघव शब्द लेकर अपना नाम रांगेय राघव रखा। उनका जीवन बेहद सीधा-सादा और सादगीपूर्ण था।
उनका अध्ययन और लेखन मानवीय जीवन, दुःख, दर्द और चेतना आदि विषयों पर केंद्रीत रहा है। उन्हें हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार, डालमिया पुरस्कार, उत्तरप्रदेश शासन, राजस्थान साहित्य अकादमी सम्मान आदि मिल चुके हैं।