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कड़वा सच : जाने पहचाने होते हैं बलात्कारी !

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प्रीति सोनी
कोई टीवी चैनल, अखबार, पत्रिका या यूं कहें कि मीडिया के गलियारों से बाहर भी, बलात्कार एक ऐसा विषय है, जो हर दिन कहीं न कहीं सुर्खि‍यों में होता है। यह सुर्खि‍यां ही बताने के लिए काफी है, कि देश में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में किस कदर बढ़ोत्तरी हुई है। उम्र चाहे कोई भी हो, घरेलू हिंसा से लेकर यौन शोषण और बलात्कार की भी हदें लांघते सामूहिक बलात्कार आज समाज और पुरूषों के दिमाग में महिलाओं की असल स्थिति या स्तर को साफ तौर पर बयां करते हैं।

 
बहरहाल, ताजा आं‍कड़ों में वह बात भी खुलकर बार आ गई, जो अब तक दबी जुबान से कही जाती रही थी। वही बात, जिसे सुनकर युवतियों से लेकर युवावस्था की दहलीज लांघ चुकी कुछ महिलाओं के जेहन में भी बचपन में हुए यौन शोषण की वह याद ताजा हो जाती होगी, जो उन्हें आज भी घृणा और कटुता से भर देती होगी। यही, कि बलात्कार, यौन शोषण के मामलों में ज्यादातर अपराधी जाने पहचाने या आसपास के लोग ही होते हैं।
जी हां, ये बात हम नहीं कह रहे बल्कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ताजा वार्षि‍क रिपोर्ट में आंकड़ें खुद यह बात बयां कर रहे हैं। इन आंकड़ों में दो प्रमुख बातें निकलकर आईं, जिन्हें समाज अक्सर अनदेखा करके चलता है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक -  '' महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा के 337,922 मामलों में रेप, यौन उत्पीड़न, बलात्कार और अपहरण कर शारीरिक शोषण करने वाले अपराधी, जाने पहचाने या आसपास के लोग ही होते हैं।'' इन मामलों में पति द्वारा शारीरिक शोषण एवं यातना देना भी शामिल है
 
और साल 2013 के मुकाबले इन मामलों में 9 प्रतिशत वृद्धि हुई है। साल 2013 में इन आंकड़ों की संख्या 337,707 थी, जो 2014 में बढ़कर 337,922 हो गई। इन सभी मामलों में देश के महानगर प्रमुखता से शामिल हैं।
 
ऐसा नहीं है, कि इस तरह के मामले केवल बड़े शहरों में ही सामने आते हैं। बल्कि छोटे शहरों और गांवों में भी इस तरह के कई मामले सामने आते हैं, और कुछ लोकलाज के चलते सामने आने से पहले ही दबा दिए जाते हैं। 
 
इसमें एक और महत्वपूर्ण बात यह सामने आई कि - '' 38 प्रतिशत शोषण और बलात्कार जैसे मामलों में पीड़िता नाबालिग होती हैं, यानि उनकी आयु 18 वर्ष से भी कम होती है।''
 
आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों के 86 प्रतिशत मामलों में अपराधी पारिवारिक सदस्य या करीबी ही होते हैं। इन मामलों में अक्सर आरोपी, पीड़ि‍ता के पिता, भाई या चाचा का कोई पारिवारिक मित्र या फिर पड़ोसी हो सकता है। यही नहीं घर में काम करने वाला या आने जाने वाला कोई अन्य व्यक्ति भी अपराधी हो सकता है, जो कम उम्र की बच्च‍ियों का शारीरिक शोषण में खुद को सुरक्षि‍त महसूस कर अपनी घृणि‍त मानसिकता वाले कार्य को अंजाम देता है। इस तरह से उसे बच्ची द्वारा अपराध की गंभीरता समझे जाने या किसी अन्य को बताए जाने का खतरा नहीं होता। अपराधी प्यार या डांट से इस बात को आसानी से दबा सकता है। 
कई बार घर के सदस्यों में ही अपराधी छिपा होता है, जिसके बारे में घर के लोगों के कम ही पता चल पाता है, और पीड़िता शोषित होने के लिए मजबूर होती है। ऐसे में महिलाओं और किशोरियों के प्रति होने वाली इस हिंसा के प्रति पहले परिवार और फिर समाज को अधिक जागरूक और सतर्क रहने की जरूरत है। हालांकि मीडिया, सरकारी व प्रशासनिक अभि‍यान द्वारा महिलाओं के प्रति होने वाले इन अपराधों से बचने  लिए जागरूकता हेतु प्रयास किए जा रहे हैं, परंतु शुरूआत खुद से हो तो बेहतर है।

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