प्रसिद्ध साहित्यकार रवींद्र कालिया का नाम किसी प्रकार के परिचय का मोहताज नहीं है। बेहतरीन कहानीकार, उम्दा उपन्यासकार जीवंत संस्मरण लेखक के अलावा बेमिसाल संपादक के रूप में रवींद्र कालिया की छवि पाठकों के मन-मस्तिष्क में आज भी अंकित है और सर्वदा रहेगी।
साहित्यकार रवींद्र कालिया का जन्म 11 नवंबर सन् 1939 को जालंधर में हुआ था और उन्होंने हिन्दी भाषा में स्नातकोत्तर तक पढ़ाई की। उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में कई कहानियों का सृजन किया जिनमें, नौ साल छोटी पत्नी, 27 साल की उमर तक, जरा सी रोशनी, गरीबी हटाओ, गली कूंचे और चकैया नीम प्रमुख हैं। इन कथाओं को खूब पसंद किया गया।
इसके अलावा रवींद्र कालिया द्वारा लिखित कहानी संग्रह - रवींद्र कालिया की कहानियां, दस प्रतिनिधि कहानियां, 21 श्रेष्ठ कहानियां जैसी रचनाएं साहित्य जगत में अपनी अलग पहचान रखती है। खुदा सही सलामत है, 17 रानडे रोड और एबीसीडी जैसे उपन्यासों के लेखन के साथ ही स्मृतियों की जन्मपत्री, कामरेड मोनालिसा, सृजन के सहयात्री और गालिब छूटी शराब जैसी बेहतरीन कृतियों का श्रेय भी रवींद्र कालिया को ही जाता है। कहानी, उपन्यास और संस्मरण लेखन के साथ-साथ व्यंग्यात्मक शैली में उनका लेखन भी कहीं कम नहीं रहा। नींद क्यों रात भर नहीं आती और राग मिलावट माल कौंस जैसे व्यंग्य आज भी पसंद किए जाते हैं।
संपादक के रूप में रवींद्र कालिया द्वारा धर्मयुग में दिए गए योगदान को समस्त साहित्य जगत जानता है। उन्हें ऐसे संपादक के रूप में जाना जाता था, जो पाठकों और बाजार की खासी परख रखता था। काफी समय वे भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक के पद पर रहे। उन्होंने अनेक पत्रिकाओं व पुस्तकों का संपादन भी किया जिनमें - नया ज्ञानोदय, वागर्थ, गंगा जमुना, मोहन राकेश संचय और अमरकांत संचयन भी शामिल हैं। इसके अलावा वे वर्तमान साहित्य में सलाहकार संपादक के पद पर भी रहे। हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने अपनी अलग पचान बनाई और युवा प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए भी उन्हें खूब जाना जाता रहा।
साहित्य में दिए गए योगदान के लिए कालिया को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा प्रेमचंद स्मृति सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान और लोहिया सम्मान से सम्मानित किए गए। इतना ही नहीं, उन्हें मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा पदुमलाल बक्शी सम्मान और पंजाब सरकार द्वारा शिरोमणि साहित्य सम्मान से भी सम्मानित किया गया। कुछ समय बीमार रहने के बाद 9 जनवरी 2016 को उनका निधन हो गया, आज साहित्य संसार शोकमग्न है।