तुम चले जाओगे, थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे
कवि अशोक वाजपेयी की कविता और प्रेरित कलाकृति
अशोक वाजपेयी प्रेम के कवि हैं। उनकी कविताओं में प्रेम कई तरह से प्रकट होता है। कभी स्मृति में, कभी रति में, कभी अवसाद में, कभी उसकी ऐंद्रिकता में तो कभी उसकी मांसलता में। उनकी अनेक प्रेम कविताओं में एक कविता है विदा। यह भी प्रेम की ही कविता है। यह कविता प्रेम को स्मृति में देखती है और महसूस करती है। चूँकि यह प्रेम है इसलिए विदा के पहले भी प्रेम है और विदा के बाद भी प्रेम है। विदा के पीछे छूट गए समय में प्रकट होता प्रेम। कई तरह से। नए रूप में, सहजता और मारकता के साथ।
चूँकि प्रेम में विदा का मतलब पूरी तरह विदा होना नहीं होता क्योंकि प्रेम की घनी उपस्थिति भौतिक उतनी नहीं है जितनी आत्मीक है। यही कारण है कि प्रेम की अनुपस्थिति में प्रेम की एक घनी उपस्थिति है। यह उपस्थिति कभी सौंधी खुशूब में अभिव्यक्त होती है तो कभी भोर के उजास के चंद्रमा में। जाहिर है यह प्रेम को नितांत ही ताजगी के साथ नए बिम्बों में अभिव्यक्त करने का कौशल है।
कविता शुरूआती पंक्तियों में विदा के बाद रह जाने के भाव से शुरू होती है और कैसे रह जाती है इसके रूपों में अभिव्यक्त होती है।
तुम चले जाओगे
पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे
जैसे रह जाती है
पहली बारिश के बाद
हवा में धरती की सौंधी-सी गंध
भोर के उजास में
थोड़ा-सा चंद्रमा
खंडहर हो रहे मंदिर में
अनसुनी प्राचीन नूपुरों की झंकार
तुम चले जाओगे
पर थोड़ी-सी हँसी
आँखों की थोड़ी-सी चमक
हाथ की बनी थोड़ी-सी कॉफी
यहीं रह जाएँगे
प्रेम के इस सुनसान में
जाहिर है विदा के बाद प्रेम विदा नहीं लेता। विदा के बाद उसकी मौजूदगी ज्यादा गहराती है। विदा के बाद भी वह थोड़ा सा रह जाता है। यह कविता विदा के बाद प्रेम के रह जाने के गहरे अहसास की कविता है। यह कविता इस अहसास को अनछुए रूपों में लक्षित करती है, अभिव्यक्त करती है। जैसे थोड़ी सी हँसी और थोड़ी सी चमक में प्रेम रह जाता है। खंडहर हो रहे मंदिर की अनसुनी प्राचीन नूपुरों की झंकार में रह जाता है। और यह भी कि हाथ की बनी थोड़ी-सी कॉफी में भी। यह पंक्ति अभी-अभी विदा के क्षण को बहुत मामूली से बिंब में पकड़ती है लेकिन इसकी मारकता असाधारण है। जैसे, किसी के अभी-अभी विदा होने का अहसास ज्यादा तीव्र होता है और उसके पीछे छूटे प्रेम का अहसास भी ज्यादा गहरा होता है।
तुम चले जाओगे
पर मेरे पास
रह जाएगी
प्रार्थना की तरह पवित्र
और अदम्य
तुम्हारी उपस्थिति
छंद की तरह गूँजता
तुम्हारे पास होने का अहसास
तुम चले जाओगे
और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे।
जाहिर है विदा के बाद जो बचा रह गया है वह और कुछ नहीं किसी के पास होने का अहसास ही है । और यह अहसास सिर्फ अहसास नहीं है बल्कि वह प्रार्थना की तरह पवित्र और अदम्य उपस्थिति है। छंद की तरह गूंजता पास होने का अहसास है। और इस तरह विदा होने के बाद किसी का थोड़ा सा यहीं रह जाना का भाव है। यह प्रेम है। यही प्रेम का अहसास है। यही प्रेम की एक घनी उपस्थिति है। यह जाने के पीछे थोड़ा सा रह जाने की कविता है।