प्रेम खोल देता है आत्मा की खिड़की
ख्यात कवि हेमंत शेष की कविता और प्रेरित कलाकृति
कभी पता नहीं चलता कि प्रेम किस मुहूर्त और किस नक्षत्र में जन्म लेता है। उनका उगना और मुरझाना कभी पता नहीं चलता। और जैसे प्रेम का जादू है वैसे ही प्रेम कविताओं का अपना जादू होता है। अपने तमाम रहस्यों के साथ, अपनी तमाम कोमल कल्पनाओं और सुनहरे ख्वाबों के साथ। अपनी समस्त पीड़ा और यातनाओं के साथ। उसके उगते ही एक पूरी दुनिया बदल जाती है।
जैसे दुनिया की सबसे ठंडी नदियाँ आपके पास से होकर गुजरती हैं, जैसे दुनिया के सबसे सुंदर फूल आपके लिए ही खिलते हैं और जंगल की तमाम चिड़ियाएँ आपके लिए ही चहचहाने लगती हैं। इसके फूटते ही फूट आती हैं नीली और काँपती इच्छाएँ। हिंदी के ख्यात कवि हेमंत शेष की कविता इति जैसा शब्द इसी तरह की कविता है जो उसके कोमलता और स्वप्निलता को, उसकी पवित्रता और पीड़ा को, उसकी आशा और निराशा को बेहद ही खूबसूरत बिम्बों, प्रतीकों और रंगों में अभिव्यक्त करती है। गौर करिए-
नर्म और सुगंधमयी कोंपलों की तरह
फूट आती हैं नीली
काँपती हुई इच्छाएँ
अनसुने दृश्यों और अनदेखी आवाजों के स्वागत में
प्रेम खोल देता है आत्मा की बंद खिड़की
वहाँ बिलकुल शब्दहीन
ओस से भरी हवाएँ प्रवेश कर सकती हैं
देह की दीर्घा की हर चीज
भीगी और मृदुल जान पड़ती है।
कितने सुंदर शब्दों के साथ कितनी मार्मिक भावनाओं के साथ यह कविता बताती है कि प्रेम खोल देता है आत्मा की बंद खिड़की जहाँ ओस से भरी हवाएँ प्रवेश कर सकती हैं। लेकिन कविता की ताकत को इससे भी ज्यादा बढ़कर है। वह जीवन का एक ऐसा अलौकिक अनुभव है जो मृत्यु और काल का प्राचीन फाटक खोल देता है, जहाँ एक अलौकिक रोशनी से भरे तालाब की तरफ दो लोग जाते हैं। जहाँ एक हरा स्थायी चंद्रमा मिलता है जिस पर दोनों अपने नाम देखते हैं-
बेचैन हाथों से
मृत्यु और काल का प्राचीन फाटक खोलकर
पूरी पृथ्वी पर बचे दो लोग आचमन के लिए
अलौकिक रोशनी से भरे तालाब की तरफ आते हैं
भय और आशंका की असंख्य लहरें गड्ड-मड्ड कर देती हैं स्पर्शों के बिम्ब
सिर्फ रात के आकाश की कलाई पर गुदा हुआ मिलता है
स्थायी हरा चंद्रमा
जिसके हर गुलाबी पत्थर पर लिखा वे
एक-दूसरे का नाम देखते हैं
लेकिन असल जादू तो अब शुरू होता है। इस प्रेम के कारण ही दिन-रात बदल जाते हैं, उनका अहसास बदल जाता है। वे एक झीने आलोक में डूबे होते हैं। इच्छाएँ इतनी होती हैं और इतनी तेज होती हैं कि उन्हें पंख लग जाते हैं। जाहिर प्रेम का यह खूबसूरत पंछी प्रेमियों को न जाने कहाँ की सैर पर जाने की लिए तमाम रास्ते खोल देता है।
वहाँ से झीने आलोक में डूब दिन उन्हें
जहाजों की तरह तैरते नजर आते हैं
अनन्त दूरियाँ और विस्तारों तक जिन्हें ले जाते हैं आकांक्षा के पंख
लेकिन कवि प्रेम के इस विरल और अलौकिक अनुभव में, इसकी नीली काँपती इच्छाओं और सपनों से भरी आँखों में पीड़ा की झलक देख ही लेता है-
शरीर में जागे हुए करोड़ों फूलों और
कुहरे में झिलमिलाते हुए जुगनूओं जैसी
मौलिक लिपि में
प्रेमीगण बार-बार लिखते हैं
संसार की सबसे प्राचीन त्रासद पटकथा
वे जिसकी बस
काँपती हुई नीली शुरुआत जानते हैं
प्रेम में विरह है, बिछड़ना है, हमेशा के लिए छूट जाना है और अकेलापन है लेकिन बावजूद इसके प्रेमी इसकी शुरुआत जानते हैं, आगे क्या होगा इससे बेखबर, बेखौफ होकर। क्योंकि वे जानते हैं कि प्रेम में इति जैसा कोई शब्द नहीं होता। उसकी बस शुरुआत होती है।
इति जैसा कोई शब्द
प्रेम के शब्दकोश में नहीं होता।
यही प्रेम है, यही प्रेम का मर्म और दर्शन है, यही प्रेम की खूबसूरती और क्रूरता भी है। यही प्रेम की वह खूबी है जो प्रेमियों में काँपती नीली इच्छाएँ जगाती है और उन्हें पंख लगाकर अनंत की उड़ान पर भेज देती है।