हाँ, वसंत तुम्हारे रंग खिले हैं
वसंत, जो पृथ्वी की आँख है
जब कतिपय सरकारी अफसर हरे-भरे दरख्तों को भू-माफियाओं की जेबों के हवाले कर रहे हों और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ नदियों-झरनों को बोतल में बंद कर रही हों, जब हँसी की गेंदों को उछालते हुए बच्चे घरों से निकलते हों और दोपहर में उनके घरों से माँ का विलाप सुनाई देता हो, गुनगुनाते हुए और अपनी चुनरी को संभालते हुए लड़की कॉलेज के लिए निकलती है और शाम को उसके पिता थाने में एफआईआर दर्ज करवाते हों, उजड़ते खेतों में किसान आत्महत्या करते हों और उनकी विधवा पत्नी को मुख्यमंत्री मुआवजा बाँटता फिरे, ऐसे में वसंत तुम्हारा क्या करूँ?
तुम्हारी आहट मेरे दरवाजे से ज्यादा मेरे मन को खटखटाती है और मैं जब अपने समय के हाहाकार को सुनता अँधेरे में धँसने लगता हूँ तो कहीं से एक झरने की आवाज मेरा हाथ थामकर मुझे गुनगुनी धूप में ला खड़ा कर देती है। इस धूप में हरी घास के बीच तुम्हारे पीले फूलों की हँसी फैली हुई है और उनकी महक से मैं बावला होकर नाचते पेड़ का गीत गुनगुनाता हूँ।
पृथ्वी के साथ जुड़े खून के इतिहास को
पोंछते हुए अब मैं वसंत कहना चाहता हूँ
वसंत जो पृथ्वी की आँख है
जिससे वह सपने देखती है
मैं पृथ्वी का देखा हुआ सपना कहना चाहता हूँ
यही सपना मुझमें कविताएँ उगाता है।
हाँ, वसंत तुम्हारे रंग खिले हैं। फूल खिले हैं। और ये जो हवा चली है, तुम्हारी अपलक आँख में उस सपने को बार-बार जन्म देती है जिसमें प्रेम हमेशा एक पीले फूल की तरह खिलता है। वसंत मुझे तुम्हारा सबसे सुंदर पीला फूल दे दो। मैं उसे प्रेम करने वाली स्त्री के जूड़े में टाँक सकूँ, जो इस वक्त तुम्हारे रंगों से लिपटी महक रही है। उसकी स्मृति में अपने प्रेमी का चेहरा शांत नदी में किसी चंद्रमा की तरह ठहरा हुआ है।
(कविता की पंक्तियाँ ख्यात कवि चंद्रकांत देवताले के कविता संग्रह जहाँ थोड़ा सा सूर्योदय होगा से साभार)