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भक्ति संगीत को नई ऊँचाइयाँ देने वाली गंगूबाई

गायिका गंगूबाई हंगल का देहावसान

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रवींद्र व्यास

उन्होंने कभी कहा था कि एक मुस्लिम संगीतकार उस्ताद बन जाता, एक हिंदू संगीतकार पंडित कहलाता है लेकिन केशरबाई और मोगुबाई जैसे महिला संगीतकार बाई ही कहलाती हैं। जाहिर है उनमें जीवन और स्त्री होने से मिले दुःख, पीडा़, यातना और त्रास थे और इसी वे बनी थी।
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कहते हैं जब शास्त्रीय गायिका सिद्धेश्वरी देवी बीमार हुईं और उन्हें लकवा मार गया तब किराना घराने की गायिका गंगूबाई हंगल उनसे मिलने गईं। उन्होंने पूछा कि आपको किसी चीज की जरूरत तो नहीं? इस पर सिद्धेश्वरी देवी ने कहा कि मुझे राग भैरवी सुनाओ। गंगूबाई हंगल ने राग भैरवी शुरू किया। भैरवी सुनते हुए सिद्धेश्वरी देवी की आँखों से आँसू बह रह थे....

क्या हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की इन दो दिग्गज गायिकाओं का यह किस्सा भर है? क्या यह किस्सा अपने समय के मर्म को नहीं बताता। क्या यह किस्सा अपने समय की गायिकाओं के बीच एक रागात्मक संबंध को चुपचाप अभिव्यक्त नहीं करता? क्या यह एक के प्रति दूसरे के सम्मान का ही सुर नहीं है? क्या यह उस समय की परतों के नीचे दबे मानवीय मूल्यों का बखान नहीं है?

इस एक किस्से में कितने अनगिनत किस्से छिपे हैं। क्या हम इस छोटे से किस्से में उस समय के छिपे हुए और किस्सों को पढ़ सकते हैं?

क्या गंगूबाई हंगल के गाने को सुनकर सिद्धेश्वरी देवी की आँखों में आए आँसू सिर्फ मृत्यु की तरफ सरकती एक गायिका का दर्द ही है? आखिर क्या कारण है कि सिद्धेश्वरी देवी उनसे राग भैरवी को ही गाने का कहती हैं? यह राग ही क्यों? कहते हैं राग भैरवी अलसुबह का राग है। कोई विरल गायक या गायिका होती है जो इस राग में छिपे उजाले को अपने सुर लगाने के तरीके से प्रकट कर देता है। जब गंगूबाई हंगल सिद्धेश्वरी देवी के सामने राग भैरवी गा रही थीं तो क्या उस राग से फूटती कोमल किरनें सिद्धेश्वरी को डूबने से थाम रही थी?

क्या यह आवाज उन्हें मृत्यु के भय से थोड़ी देर के लिए ही सही मुक्त कर रही थीं? यह होता है, और संगीत में बहुधा होता है कि कोई राग, सुर लगाने का तरीका, एक सुर से दूसरे सुर तक जाने का तरीका इतना अनूठा होता है कि उससे जो असर पैदा होता है वह किसी भी जादू से कम नहीं होता । वह इतनी ताकत रखता है कि आप सबकुछ भूल जाते हैं। यहाँ तक कि अपने अस्तित्व को भी। यह संगीत का जादू है।

लेकिन इस तरह से गा देना सिर्फ कौशल से आता है क्या? क्या इस तरह गा देना रियाज से आता है? शायद नहीं। क्योंकि गाना कौशल से आता, रियाज से आता तो हर कोई सुबह से शाम तक रियाज कर कलाकारी सिद्ध कर सकता है।

लेकिन गंगूबाई हंगल से ज्यादा यह कौन जान सकता है कि गाना सिर्फ रियाज नहीं आता। उसके लिए जीवन से रस लेना पड़ता है। जीवन में दुःख और त्रास सहना पड़ता है। और तब गाने में और आवाज में वह तासीर पैदा होती है जो सीने को चिर के रख देती है। सिद्धेश्वरी देवी के सामने वही आवाज थी। गंगूबाई हंगल की वही आवाज थी जो रियाज से निखरी तो थी लेकिन उसकी तासीर जीवन से बनी थी। जीवन के दुःख से, जीवन की पीड़ा से और जीवन की यातना से बनी थी।

गंगूबाई हंगल ने अपने जीवन में एक स्त्री के रूप में और गायिका के रूप में जो संघर्ष किया वही उनकी आवाज के पीछे का मर्म है। वे एक निचली जाति में पैदा हुई थी और इसी कारण तत्कालीन समाज में उन्हें रोज ब रोज अपमानित और उपेक्षित होना पड़ता था।

यह तो उनकी माँ की ताकत थी जिसकी वजह से गंगूबाई हंगल ने केवल गाना सीख सकीं बल्कि तमाम जानलेवा परिस्थितियों के बीच साहस के साथ जीवन बिता सकीं और संगीत में वह मुकाम हासिल कर सकीं जो विरले ही कर पाते हैं।

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एक साक्षात्कार में उन्होंने कहीं कहा था कि कई लोग कहते हैं कि जब आप तानपुरा लेकर बैठो तो जिंदगी के सारे दुःख और संताप भूल जाते हैं। मेरे लिए यह एक झूठ है। मैं जब तानपुरा लेकर बैठती थी मेरी जिंदगी के तमाम दु-ख औऱ परेशानियाँ मुझे घेर लेते थे। मुझे अपने परिवार की चिंता सताए रहती थी। लेकिन अपनी माँ से लेकर सवाई गंधर्व से संगीत की तालीम हासिल करने के दौरान उन्होंने अपनी गायकी से धीरे-धीरे वह सम्मान अर्जित किया जो उस समय किसी महिला के लिए हासिल करना लगभग असंभव था।

उन्होंने कभी कहा था कि एक मुस्लिम संगीतकार उस्ताद बन जाता, एक हिंदू संगीतकार पंडित कहलाता है लेकिन केशरबाई और मोगुबाई जैसे महिला संगीतकार बाई ही कहलाती हैं। जाहिर है उनमें जीवन और स्त्री होने से मिले दुःख, पीडा़, यातना और त्रास थे और इसी वे बनी थी। उनकी आवाज भी इसी से बनी थी। उनकी आवाज में जिंदगी का दर्द था। लेकिन उनमें कटुता नहीं आई। ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा औऱ आस्था थी और यही कारण है कि उन्होंने अपनी आवाज से भक्ति संगीत को नई ऊँचाइयाँ दीं।

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