Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

बहुमुखी प्रतिभा के धनी पं. चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' की जयंती

Advertiesment
हमें फॉलो करें Guleri
रोहित कुमार 'हैप्पी', न्यूज़ीलैंड

आज हिंदी साहित्य को 'उसने कहा था' जैसी कालजयी कहानी देने वाले पं. श्री चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' की जयंती है। गुलेरी की केवल तीन कहानियां ही प्रसिद्ध है जिनमें 'उसने कहा था' के अतिरिक्त 'सुखमय जीवन' व 'बुद्धू का कांटा' सम्मिलित हैं। गुलेरी के निबंध भी प्रसिद्ध हैं लेकिन गुलेरी ने कई लघु-कथाएं और कविताएं भी लिखी हैं जिससे अधिकतर पाठक अनभिज्ञ हैं।
 
पिछले कुछ दशकों में गुलेरी का अधिकतर साहित्य प्रकाश में आ चुका है लेकिन यह कहना गलत न होगा कि अभी भी उनकी बहुत-सी रचनाएं अप्राप्य हैं। यहां गुलेरी जी के पौत्र डॉ. विद्याधर गुलेरी, गुलेरी के एक अन्य संबंधी डॉ. पीयूष गुलेरी व डॉ. मनोहरलाल के शोध व अथक प्रयासों से शेष अधिकांश गुलेरी-साहित्य हमारे सामने है। 
 
जैनेन्द्र ने एक बार गुलेरी के विषय में कहा था, 'पं. चंद्रधर शर्मा गुलेरी विलक्षण विद्वान थे। उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी। उनमें गज़ब की ज़िंदादिली थी और उनकी शैली भी अनोखी थी। गुलेरी जी न केवल विद्वत्ता में अपने समकालीन साहित्यकारों से ऊंचे ठहरते थे, अपितु एक दृष्टि से वह प्रेमचंद से भी ऊंचे साहित्यकार हैं। प्रेमचंद ने समसामयिक स्थितियों का चित्रण तो बहुत बढ़िया किया है, पर व्यक्ति-मानस के चितेरे के रूप में गुलेरी का जोड़ नहीं है।' 
 
अगले पृष्ठ पर पढ़ें गुलेरी जी की लघु-कथाएं :-
 

 
webdunia


 


प्रस्तुत हैं गुलेरी जी की लघु-कथाएं : - 
 
गालियां
 
एक गांव में बारात जीमने बैठी। उस समय स्त्रियां समधियों को गालियां गाती हैं, पर गालियां न गाई जाती देख नागरिक सुधारक बाराती को बड़ा हर्ष हुआ। वह गांव के एक वृद्ध से कह बैठा, 'बड़ी खुशी की बात है कि आपके यहां इतनी तरक्की हो गई है।' 
 
बुड्ढ़ा बोला- 'हां साहब, तरक्की हो रही है। पहले गलियों में कहा जाता था.. फलाने की फलानी के साथ और अमुक की अमुक के साथ..। लोग-लुगाई सुनते थे, हंस देते थे। अब घर-घर में वे ही बातें सच्ची हो रही हैं। अब गालियां गाई जाती हैं तो चोरों की दाढ़ी में तिनके निकलते हैं। तभी तो आंदोलन होते हैं कि गालियां बंद करो, क्योंकि वे चुभती हैं।' 
 
****
 
भूगोल
 
एक शिक्षक को अपने इंस्पेक्टर के दौरे का भय हुआ और वह क्लास को भूगोल रटाने लगा। कहने लगा कि पृथ्वी गोल है। यदि इंस्पेक्टर पूछे कि पृथ्वी का आकार कैसा है और तुम्हें याद न हो तो मैं सुंघनी की डिबिया दिखाऊंगा, उसे देखकर उत्तर देना। गुरुजी की डिबिया गोल थी।
 
इंस्पेक्टर ने आकर वहीं प्रश्न एक विद्यार्थी से किया और उसने बड़ी उत्कंठा से गुरुजी की ओर देखा। गुरु ने जेब में से चौकोर डिबिया निकाली। भूल से दूसरी डिबिया आई थी। लड़का बोला, 'बुधवार को पृथ्वी चौकौर होती है और बाकी सब दिन गोल।' 
 
-------------
 
अगले पृष्ठ पर देखिए गुलेरी जी की कविताएं :- 
 
 

अब गुलेरीजी की कविता 'सोऽहम्' की बानगी देखिए :- 
 
करके हम भी बी.ए. पास
          हैं अब जिलाधीश के दास।
पाते हैं दो बार पचास
      बढ़ने की रखते हैं आस ॥1॥
 
******** 
खुश हैं मेरे साहिब मुझ पर
         मैं जाता हूं नित उनके घर।
मुफ्त कई सरकारी नौकर
         रहते हैं अपने घर हाजिर ॥2॥
 
********* 
 
पढ़कर गोरों के अखबार
         हुए हमारे अटल विचार,
अंग्रेज़ी में इनका सार,
         करते हैं हम सदा प्रचार ॥3॥
 
*********
 
वतन हमारा है दो-आब,
        जिसका जग में नहीं जवाब।
बनते-बनते जहां अजाब,
        बन जाता है असल सवाब ॥4॥
 
*******
 
ऐसा ठाठ अजूबा पाकर,
        करें किसी का क्यों मन में डर।
खाते-पीते हैं हम जी भर,
        बिछा हुआ रखते हैं बिस्तर ॥5॥
 
********
हमें जाति की जरा न चाह,
नहीं देश की भी परवाह।
हो जावे सब भले तबाह,
हम जावेंगे अपनी राह ॥6॥
 
- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी
 
[सरस्वती 1907 में प्रकाशित गुलेरी जी की रचना]
 
 
 
अगले पृष्ठ पर जानिए गुलेरी जी संबंध में वि‍शेष बातें... 

 

गुलेरी : क्या आप जानते हैं?
 
• गुलेरीजी अपनी केवल एक कहानी, 'उसने कहा था' के दम पर हिंदी साहित्य के नक्षत्र बन गए।
 
• गुलेरीजी ने केवल तीन कहानियां नहीं लिखी थी, बल्कि 1900 से 1922 तक प्रचुर साहित्य सृजन किया तथा अनेक हिंदी लेखकों का मार्गदर्शन भी किया। आपने अनेक कविताएं, निबंध, लघु-कथाएं लिखी हैं और इसके अतिरिक्त अनुवाद भी किए।
 
• गुलेरीजी पहले कवि तत्पश्चात् निबंधकार व कथाकार हैं। आपकी ब्रज कविताओं का रचनाकाल जनवरी, 1902 है।
 
• आप नौ-दस वर्ष की आयु में मातृभाषा की भांति संस्कृत में धाराप्रवाह वार्तालाप करते थे। दस वर्ष की आयु में बालक गुलेरी ने संस्कृत में भाषण देकर 'भारत धर्म महामंडल' को अचंभित कर दिया था। 
 
• गुलेरीजी ने केवल उन्तालीस वर्ष, दो महीने और पांच दिन का जीवन पाया। वे 7 जुलाई 1883  को जन्मे और 12 सितंबर  1922 को आपका देहांत हो गया।
 
• गुलेरीजी ने चंद्रधर, चंद्रधर शर्मा तथा चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' के अतिरिक्त भी कई अन्य नामों से लेखन किया जिनमें 'चिट्ठीवाला, एक चिट्ठीवाला, अनाम, कंठा, शब्द कौस्तुभ का कंठा, एक ब्राह्मण इत्यादि सम्मिलित हैं।


 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi