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थियेटर की दुनिया का सितारा अस्त

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स्मृति आदित्य

, मंगलवार, 20 मई 2008 (10:10 IST)
भारतीय नाट्य इतिहास का यह दु:खद पल है कि थियेटर की दुनिया का एक प्रखर सितारा अस्त हो गया। एक ऐसा शख्स जिसने 6 वर्ष की कोमल उम्र में कहानी लिख डाली और 80 वर्ष की आयु तक असंख्य यादगार रचनाएँ कला-जगत को दे डालीं, उसका यूँ चले जाना आँखों की पोर को भिगो देता है।

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सृजन और कला की ऐसी कोई विधा नहीं बची थी, जो विजय तेंडुलकर को स्पर्श करके न गुजरी हो और अभिव्यक्ति का ऐसा कोई आयाम नहीं, जिसे 'विजय' की प्रतिभा न 'जीत' सकी हो। एक बहुआयामी व्यक्तित्व का यूँ चले जाना रचनात्मकता के उस अयन को सूना कर देता है, जहाँ से खड़े होकर हम उनके इंद्रधनुषी सृजन को निहारा करते थे।

विजय तेंडुलकर जब प्रखर राजनीतिक पत्रकार बनकर उभरे तो उनकी बेबाकी ने हतप्रभ कर दिया। जब नाटककार के रूप में स्थापित हुए तो 'घासीराम कोतवाल' जैसी अद्‍भुत रचना को जन्म देकर नाट्य जगत के मील के पत्थर बन गए। फिल्मों में लेखन आजमाया तो 'अर्धसत्य' और 'आक्रोश' (संवाद लेखन) जैसी दिल को हिला देने वाली फिल्में उनकी पहचान बन गईं।

अपनी तीखी टिप्पणियों से छलनी करने की ताकत थी उनमें, वहीं निबंधकार के रूप में उनकी संवेदनशील और मर्मस्पर्शी रचनाएँ चर्चा का विषय बनीं।

6 जनवरी 1928 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे विजय तेंडुलकर को विरासत में साहित्य का सौंधा अनुकूल वातावरण मिला। कब नन्हे हाथों ने कलम थाम ली, खुद उन्हें भी नहीं पता था। 'भारत छोड़ो आंदोलन' में भी उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई।

संघर्ष के शुरुआती दिनों में वे 'मुंबइया चाल' में रहे। 'चाल' से बटोरे सृजनबीज बरसों मराठी नाटकों में अंकुरित होते दिखाई दिए। 1961 में उनका लिखा नाटक 'गिधाड़े' (गिद्ध) खासा विवादास्पद रहा।

'ढाई पन्ने' 'शान्तता कोर्ट चालू आहे', 'घासीराम कोतवाल' ने मराठी थियेटर को नवीन ऊँचाइयाँ दीं। नए प्रयोग, नई चुनौतियों से वे कभी नहीं घबराए, बल्कि हर बार उनके लिखे नाटकों में मौलिकता का अनोखा पुट होता था। कल्पना से परे जाकर सोचना उनका विशिष्ट अंदाज था।

भारतीय नाट्य जगत में उनकी विलक्षण रचनाएँ सम्मानजनक स्थान पर अंकित रहेंगी। अपने जीवनकाल में विजय तेंडुलकर ने पद्मभूषण (1984), महाराष्ट्र राज्य सरकार सम्मान (1956, 69, 72), संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड (1971), 'फिल्म फेयर अवॉर्ड (1980, 1999) एवं महाराष्ट्र गौरव (1999) जैसे सम्मानजनक पुरस्कार प्राप्त किए थे। हर रचनाधर्मी-कलाप्रेमी का उनको शत्‌-शत्‌ नमन।

प्रख्यात लेखक विजय तेंडुलकर का निधन

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