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चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है...

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अजातशत्रु

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लता सर्वप्रथम इसी गाने से मशहूर हुईं। वैसे महल, बरसात और अंदाज जैसी फिल्में थोड़े बहुत फर्क के साथ रिलीज हुईं और इनके गानों के कारण लता का नाम सारे देश में फैल गया। 'बरसात' के 'हवा में उड़ता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल' ने लोगों को पगला दिया। 'महल' के 'आएगा आने वाला' से लता गंभीर श्रोताओं में मकबूल हुईं। पर सच यह है कि 'चुप-चुप खड़े हो' ने गाँव-देहातों में ज्यादा जड़ जमाई। खुद मैंने अपने एक मामा को- जो हाल ही इस संसार से रुखसत हुए, ठुमक-ठुमककर यह गीत गाते सुना था। अम्मा, मौसी, बुआ वगैरह- सब इस गाने पर फिदा थीं।

तब कोई लता मंगेशकर को जानता भी नहीं था। मैंने भी तब सोचा नहीं था कि एक दिन इस गायिका पर वर्षों जोर-शोर से लिखूंगा। इस गीत के लोकप्रिय होने का पहला कारण खुद राजेन्द्रकृष्ण के बोल और हुस्नलाल भगतराम की धुन हैं। तब, हिन्दुस्तान गांव-देहातों का हिन्दुस्तान था। मेले-ठेले की संस्कृति अपने शबाब पर थी। सिनेमा के गीत-संगीत पर लोकसंगीत का रंग चढ़ा हुआ था। गांवों में मेहमान आते थे और दिनों तक ठहरते थे।

परिवारों में यह आना-जाना उत्सव का माहौल बनाए रखता था। जिजाजी ससुराल आ जाएं, तो छोटी-छोटी सालियां उन्हें खूब छेड़ती थीं और 'चुप-चुप खड़े हो' जैसे गाने गाकर दीदी और जिजाजी को परेशान करती थीं। लोग नौटंकियों के शौकीन थे। नौटंकियां देहातों में आती-जाती रहती थीं। कुल मिलाकर ऐसे माहौल से यह गाना उपजा था और इसलिए लोगों के दिल में उतर गया। सिनेमा ने अभी-अभी एक और काम किया था। सदियों से इश्क-मोहब्बत और छेड़छाड़ की जो बातें निजी थीं, अब सिनेमा के परदे पर खुल्लमखुल्ला नजर आने लगीं।

इससे सामूहिक अवचेतन भी- नई, ताजी स्वतंत्रता का आनंद लेते हुए, ऐसे गीतों की ओर झुका। सिनेमा ने, विकासवाद ने, देश की ताजी-ताजी आजादी ने प्रायवेसी के बर्फ को तोड़ दिया था और देश 'अनेक मैं' से एक विराट 'हम सब' में तब्दील हो गया था। 'बड़ी बहन' (1949) का यह गीत सामूहिक उत्सव बनकर आया। इसी के साथ, इस गीत में लता और प्रेमलता की कमसिन, शोख आवाजें, छेड़छाड़ करती हुई दो चपल किशोरियों या 'सालियों' का चित्र खड़ा करती हैं। इस कारण भी यह गीत लोगों के दिल के ज्यादा करीब गया।

फिर लता का पदार्पण हो चुका था। उनकी आवाज की ताजगी, मिठास और निर्मलता- जो प्रकृति का तोहफा बनकर आई थी- राष्ट्र को नई सौगात सी मालूम पड़ी। गाना, इन तमाम कारणों से सुपरहिट रहा और लता की जीवनी लिखने वालों के लिए 'ऐतिहासिक' महत्व रखता है। यह भी नोट करें कि हुस्नलाल-भगतराम ने इस गीत की धुन को और संगीत को इतना आसान रखा था... कि दूर-दराज देहातों की स्त्रियां भी लोटे पर सिक्का बजाकर इसे गा सकें। आओ, हम इतिहास के एक प्यारे से टुकड़े को प्रणाम करें। गीतकार, राजेंद्रकृष्ण।

शब्द रचना :
लता : चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है-(2)
लता और प्रेमलता : पहली मुलाकात है
ये पहली मुलाकात है
चुप-चुप खड़े हो...(2) / पहली मुलाकात है ये...(2)
पहली मुलाकात है ये पहली मुलाकात है।
लता : साजन की बात पर गुस्सा जो आ गया
जुल्फों का बादल गालों पे छा गया, हो, गालों पे छा गया
(सभी लाइनें फिर से)
अभी-अभी दिन था अभी-अभी रात है-(2)
दोनों : पहली मुलाकात है
ये पहली मुलाकात है-(2)
चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है-(2)
पहली मुलाकात है
ये पहली मुलाकात है-(2)
लता : पहली मुलाकात में
बात ऐसी हो गई,
राजा भी खो गया, रानी भी खो गई,
हो, रानी भी खो गई
(सभी लाइनें फिर से)
दोनों को न पता चला
मजे की ये बात है-(2)
दोनों : पहली मुलाकात है
ये पहली मुलाकात है-(2)
चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है-(2)
पहली मुलाकात है ये पहली मुलाकात है
पहली मुलाकात... है!

अब कौन सी बड़ी बात है, इसी आसान से, सीधी-सादी चाल वाले गीत में? जवाब है- कोई खास बात नहीं। पर तब भी इसका ऐतिहासिक महत्व है। दूजे, लता की आवाज यहां ताजी, मासूम और मीठी है। इसी आवाज ने तब अवाम का ध्यान खींचा था। तीसरे, इस दौर तक आकर गाने का स्टाइल सीधा और सहज हो गया था। अब गाना ऐसा हो गया था, जैसे बातचीत। पहले की कृत्रिमता- जैसे गाना अलग चीज है और बातचीत अलग चीज है- मिट गई थी। इस कारण ने भी नवीनता की ओर ध्यान खींचा। गीत हिट हो गया। इसका महत्व आज यही है कि यह धुन और बोल के हिसाब से आज उतना अपील नहीं करता, इसने एक बार हिन्दुस्तान को लूट लिया था।

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