Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

झुकती घटा, गाती हवा, सपने जगाए...

हमें फॉलो करें झुकती घटा, गाती हवा, सपने जगाए...

अजातशत्रु

आप सब जानते हैं यह फिल्म 'धूल का फूल' (1959) का प्रणय-गीत है, जिसे आशा भोंसले व महेन्द्र कपूर ने गाया है। बी.आर. चोपड़ा द्वारा निर्मित इस सुपर हिट फिल्म के निर्देशक उनके छोटे भाई यश चोपड़ा थे। फिल्म के सारे गीत साहिर लुधियानवी ने लिखे थे। 'धूल के फूल' के संगीतकार एन. दत्ता थे।

आपको याद होगा कि इसी मूड-मिजाज का वातावरण गीत फिल्म में राजेन्द्रकुमार और माला सिन्हा पर आया था- 'धड़कने लगे दिल के तारों की दुनिया, जो तुम मुस्करा दो....।' मगर आलोच्य गीत राजेन्द्रकुमार और नंदा पर है। दोनों गीतों में वही प्रकृति, वही झील-झरने, वही बादल और वही एबेंडनमेंट यानी उन्मुक्तता। पर एक ही मूड के दो गीत अलग-अलग कपल्स (जोड़ों) पर क्यों? इसलिए कि फिल्म की कथा बताना चाहती है कि पुरुष, प्रकृति और वातावरण वही है, मगर पुरुष जीवन में अब कोई अन्य औरत है जो उसकी पत्नी है।

प्रेमी-प्रेमिका/ पति-पत्नी के कंट्रास्ट को संकेतबद्ध करता हुआ यह गीत नर की बेवफाई, नारी की ट्रेजेडी और बदले हुए हालात के बीच उसी एक अपरिवर्तनशील प्रकृति की उपस्थिति को चित्रित करता है। इस दूसरे गीत के बाद पहला गीत अपने आप व्यंग्य (ड्रामेटिक आयरनी) में बदल जाता है और पूर्व प्रेमिका का सुख, नवागत पत्नी के परिप्रेक्ष्य में दयनीय दर्द मालूम पड़ने लगता है।

निर्देशक आपको बता रहा था कि सब कुछ आज भी वही है। पर वही प्रकृति, वही बादल, वही झील, वही हवाएं, वही आसमान... किसी और के हिस्से में जा चुके हैं। यकीनन यश चोपड़ा ने यही सब सोचकर एक ही मिजाज के दो प्रणय-गीत रखे थे। और अगर इस अंतर्योजना को हम पकड़ नहीं पाते तो कला को, प्रतिभा को 'हर्ट' कर रहे हैं। लगे हाथ इस बात पर भी गौर कीजिए कि फिल्म की दोनों नारियों के लिए वही एक आशा प्लेबैक देती हैं, पर दूसरे गीत (झुकती घटा, गाती हवा वाला) में वे प्रेमिका के बजाय पत्नी के लिए गाती हैं और यहीं वे कमाल करती हैं। नंदा वाले हिस्से को उन्होंने बड़ी कोमलता, पत्नीसुलभ समर्पणशीलता और मिठासभरे अपनेपन से गाया है। यहां भी शोखी है। पर... छुईमुईपन थोड़ा ज्यादा है। 'नन्हा-सा दिल मेरा मचल-मचल जाए' वाली पंक्ति में वे एक सुधर्मा, शालीन, लज्जालु पत्नी को रूपायित कर देती हैं। 'नन्हा-सा' शब्द में एक दूरगत संकेत यह भी है कि राजेंद्र और नंदा के जीवन में एक 'नन्हा' जीव आने वाला है। कहने का अर्थ यह है कि फिल्म हमारी आंख के नीचे भी बहुत कुछ चलती है।

इस गीत में दो-तीन विशेषताएं हैं। पहली यह कि संगीत कर्णप्रिय है और सॉफ्ट है। व्यर्थ का शोर और आर्केस्ट्रा की तड़क-भड़क नहीं है। सी. रामचंद्र और हेमंतकुमार की तरह एन. दत्ता ने भी ख्याल रखा है कि गीत कोमल और संगीतमय कविता बना रहे। दूसरी, आशा इसे काफी कुछ सर्दीनी, नुकीली और लाड़भरी आवाज के साथ गाती हैं और एक किस्म का जीवंत वातावरण आसपास तैयार करती हैं। कई बार यह सोचने को जी करता है कि सेन्सुअस ढंग से गाने में वे लता को भी कई बार पार कर जाती हैं। गीत की तीसरी विशेषता है महेन्द्र कपूर और साहिर साहब के नर्मो-नाजुक अल्फाज। ऐसा लगता है कि जैसे गीत हवा की लहर पर बैठकर लिखा गया है और महेन्द्र कपूर ने अपना धीमा हिस्सा फूलों की छांव में बैठकर गाया है।

पलटकर गौर कीजिए तो याद आती है- नदी के कछार में बहती नर्म और तर हवा और उस पर गिरते हुए थरथराते फूल। रूह की रोम-रोम में घुंघरू बज उठते हैं। यह भी गौर कीजिए कि एन. दत्ता ने महेन्द्र कपूर का हिस्सा करीब-करीब गद्य में और फुसफुसाती आवाज में रखा है। उसकी धुन भी आशा के हिस्से से अलग और अनोखी है। राजेन्द्रकुमार का नंदा पर झुक जाना, उसके कानों के करीब मुंह करके गाना और उसके कोमल-उज्ज्वल चेहरे के सॉफ्ट क्लोज-अप्स... ये सब मिलकर गीत को सितारे के तार पर थरथराती हुई ओस बूंदों की लड़ियाँ बना देते हैं। दुनिया इतनी सुंदर कब थी- मन हठात्‌ कह पड़ता है।

तो ऐसा नाजुक काम था उस दौर के महारथियों का। खैर, पढ़िए गीत की शब्दरचना और साहिर के एक-एक लफ्ज को चुगिए।

(पहले, लोक संगीत का-सा टुकड़ा। लोकगीत-सा कोरस। 'जुल्मी संग आंख लगी' के इंट्रो की याद दिलाता। और आशा का आलाप, ललाकार)

आशा : झुकती घटा, गाती हवा, सपने जगाए
नन्हा-सा दिल मेरा मचल-मचल जाए, होऽऽऽ ओ।
महके हुए, बहके हुए मस्त नजारे,
नखरे हुए, बिखरे हुए रंग के धारे
कोरस :हूंऽऽ, हूंऽऽऽ हूंऽऽऽ
आशा : महके हुए, बहके हुए मस्त नजारे,
निखरे हुए, बिखरे हुए रंग के धारे
आज गगन होके मगन हमको बुलाए
(पॉज। ताल परिवर्तन। और मुखड़े की धुन पर वापसी)
झुकती घटा, गाती हवा, सपने जगाए
नन्हा-सा दिल मेरा मचल-मचल जाए, होऽऽऽ ओ,
झुकती घटा... जगाए/ नन्हा-सा... मचल जाए, होऽऽऽ ओ।

(महेन्द्र का यह अंतरा ही गीत की जान है और साहिर की फूलबयानी का असरदार जादू। महेन्द्र इतने 'सेन्सुअस' और लजीज होकर बहुत कम मिले हैं। कोमलता और मिठास में यहां उनका जवाब नहीं। समझ लीजिए गीत, संगीत और गायन में हम अव्वल दर्जे की कविता सुनते हैं।)

महेन्द्र : (गद्य में टुकड़ा, अधगाते हुए/ पृष्ठभूमि में केवल तबला बजते हुए, दूर कहीं)
हूंऽऽऽ, रवां है छोटी-सी कश्ती हवाओं के रुख पर,
नदी के ख्वाब से मल्लाह गाता है (आशा -हाऽऽऽ, हाऽऽऽ)
तुम्हारा जिस्म हर इक लहर के झकोले से ओऽऽऽ
मेरी शरीर निगाहों में घुल जाता है
(और ताल बदलता है।)
आशा : आऽऽऽ, जिस्म मेरा, जां भी मेरी, तेरे लिए है
प्यार भरी दुनिया सजी तेरे लिए है।
(दोनों लाइनें फिर से)
आंखों पे हैं छाए तेरे जलवे के साए
(पॉज। और वापसी मुखड़े पर)
झुकती घटा, गाती हवा, सपने सजाए
नन्हा-सा दिल मेरा मचल-मचल जाए
होऽऽऽ झुकती हवा.../नन्हा-सा... जाए, होऽऽऽ

थोड़ा-सा समापनी संगीत और संगीत समाप्त।...याद रह जाती है सन्‌ 59 की धूप, गलियां, लोग, दरख्त, साए, राजेन्द्र-माला सिन्हा, राजेन्द्र-नंदा और फिल्म के पोस्टर। 'धूल का फूल' यकीनन सेल्यूलाइड पर एक कविता थी। पर पलटकर देखने की अब किसे पड़ी है! ...व्यस्त होने को बहुत-सी जायज-नाजायज व्यर्थताएं जो हैं!...

हो गईं 'गालिब' बलाएं सब तमाम
एक मर्गे-नागहानी और है।

(मर्गे-नागहानी द अचानक मौत)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi