यह गाना करीब-करीब आप सबका सुना हुआ है। सन् 64 के साल जारी हुआ था। पहली खूबी इसकी यह है कि कविता सरल और कोमल है। शब्द पानी की तरह बहते जाते हैं, मन के अदृश्य धागे पर कहीं नहीं अटकते। हर शब्द अपने उच्चारण के साथ दूसरे शब्द के उच्चारण में समा जाता है, जैसे पिघलता बर्फ पिघलते बर्फ में विलीन होता है। यह शब्द रचना तब लता को गायन में मेलडी लाने और भाव को गहरा करने में मदद करती है।... दूसरी खूबी यह है कि धुन सरल, मधुर और हिन्दुस्तानी है।
कहीं भी विदेशी संगीत का जरा असर नहीं। करीब-करीब भोजपुरी लोकधुनों के आसपास मंडराती यह धुन शुद्धतः भारतीय नारी की कोमल, सौम्य, प्रेममय और निष्ठापूर्ण छवि को उभारती है। हम धुन, गायन और उनके प्रभाव के पीछे से एक ऐसी नारी को अपने भीतर उठते देखते हैं, जिसके लिए पति या प्रेमी ही सब कुछ है। उसका प्रेम, उसकी निष्ठा, उसकी भंगिमाएँ, उसका खुलापन सब उसके और उसके पुरुष के बीच के एकांत तक सीमित है। उसके बाहर वह गुरु-गंभीर और संयत है।
एक प्रकार से यही भाव-तत्व लता मंगेशकर के व्यक्तित्व के हैं। सो गीत की मिठास और सौम्यता तथा उनसे उठने वाली भारतीय यौवना की प्रीतिकर छवि... स्वयं लता के अपने कारण भी है। इस बात को पलटकर इस तरह भी कहा जा सकता है कि अनिल बिस्वास/ रोशन/ मदनमोहन/ सलिल चौधरी/ एस.डी. बर्मन और हेमंत कुमार की धुनों, संगीत और पसंद की शब्द रचनाओं से जो 'शकुंतला' जन्मी, उसे ठोस व्यक्तित्व और सौम्य आकृति लता के निजी व्यक्तित्व और पावन गायन ने दे दी।
फिल्म 'पूजा के फूल' का यह गीत लता और मदनमोहन के कारण हमारे कानों और दिलों में ऐसा ही सुखद वातावरण रचता है। अर्थात फिल्मी गीत केवल गाना नहीं होता। वह देश के इतिहास और संस्कृति की खुशबू भी होता है। उससे हम अतीत की खोई हुई शक्लों को दोबारा प्राप्त करते हैं।
पढ़िए गीत। इसे राजेन्द्र कृष्ण ने लिखा था। (पहले फुसफुसाहट की पिच पर लता की लाइन आती है- 'दूर मुझसे कोई मेरी नींद लिए जाता है।' फिर गाना शुरू होता है।)
मेरी आँखों से कोई नींद लिए जाता है
दूर से प्यार का पैगाम दिए जाता है।
मेरी आँखों से...... लिए जाता है।
(अंतरा)
रात भर जागेंगे हम, उनसे छुप-छुपके सनम- (2)
आँख झपके न कभी चाँद तारों की कसम
दिल मेरा इकरार किए जाता है,
दूर आँखों से....../ मेरी आँखों से......
(अंतरा)
बात जो उनसे चली, वो इधर आके रुकी- (2)
नाम जब उनका लिया, एक खुशबू-सी उड़ी
एक तसव्वुर है जो मदहोश किए जाता है,
दूर आँखों से....../ मेरी आँखों से......
(गीत खत्म हो जाता है। खामोशी छा जाती है और फिर उसी फुसफुसाहट में लता की गीत-पूर्व की पंक्ति आती है- 'दूर मुझसे कोई मेरी नींद लिए जाता है।' याद रखें, यह इंतजाम, यह इफेक्ट इसलिए कि गीत में नींद का जिक्र आता है। असर यह देता है कि गीत, रात के सोते हुए वातावरण में, अधजागी ऊँघ में गाया जा रहा है। गीत में शब्दार्थ के अलावा बहुत से छोटे डिटेल्स होते हैं, जो साधारण श्रवण में नोट करने नहीं आते, जबकि उनके पीछे श्रमसाध्य योजना होती है। तीन मिनट का गाना तीन मिनट से ज्यादा लंबा होता है।)
'पूजा के फूल' एक साफ-सुथरी सामाजिक फिल्म थी। ए. भीमसिंग जैसे इसके नामी निर्देशक थे। लता ने माला सिन्हा की सौम्यता और संवेदनशीलता को खूब पकड़ा है और उसके पावन, समर्पणशील प्यार को बराबर की 'इंटेन्सिटी' (सघनता) बख्शी है। लता अभिनय नहीं करतीं। पर उनकी भावपूर्ण और बारीक समझ से भरी गायिकी अभिनेत्री के पात्र को उठा देती है। यह जैसे बिना नजर आए हुए कंठ से अभिनय करना है।
लता, गायन की दिलीपकुमार हैं। हम यह न भूलें कि ऐसा सुसंस्कृत, स्वच्छ और सात्विक माहौल मदन मोहन जैसे प्रखर भारतीयतावादी और लता जैसी 'आध्यात्मिक' गायिका ने तैयार किया था। जमाना कितना गिर जाए, कला का ऐसा मोगरा हमेशा खिला रहेगा और तरह-तरह की बदबुओं के बीच हमें याद दिलाता रहेगा कि फिजां में खुशबू अभी बाकी है।