Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

सांवले सलोने आए दिन बहार के...

हमें फॉलो करें सांवले सलोने आए दिन बहार के...

अजातशत्रु

NDND
लता-हेमंत के युगल गीत महज सिनेमाई नगमे नहीं हैं, वे हमारी आत्मा को पवित्र विचारों से भर देते हैं। एक कचोट उठती है कि सरल-सहज, प्यारे-प्यारे, निर्मल गीतों के वे पुराने दिन अब लौटेंगे या नहीं? क्या फिर से लता जवान हो सकेंगी और फिर से हेमंत दा का वह शालीन, निष्पंक स्वर नए गीतों में सुनाई पड़ सकेगा?

सच यह है कि दुनिया फानी है और बीता हुआ कभी नहीं लौटता। जान-बूझकर मन को छलने की इच्छा होती है। इसका कारण घूम-फिरकर यही है कि गुजरे दौर ने कितने प्यारे नगमे दिए, कैसी हसीन शायरी दी और कैसे लता/ आशा/ रफी/ मन्नाडे/ हेमंत/ मुकेश/ गीता दत्त और तलत जैसे तोहफे आलम को बख्शे।

इन सबने मिलकर रूह को जो ताजगी दी, दिल को जो सुकून अता किया और जमीर को अखलाक (नैतिकता) से जिस कद्र नवाजा, उसे याद करके यह कसक उठती है कि आज हमने कितना खो दिया और कल वक्त बचा-खुचा भी हमसे छीन लेगा! माउथ आर्गन की लीड लिए, प्रवाह के साथ चलने वाला यह सैलानी गीत, लता और हेमंत दा की निष्पाप, स्वच्छ आवाजों के कारण आज भी हमें मोहता है। नजर के सामने बहार के हरे-भरे मंजर खड़े करता है। किसी ग्रामीण भोली-भाली नदी के अहिंसक किनारों को स्मृति में लाता है। इंसानियत, यारी और मेहमाननवाजी के जमानों की याद दिलाती फिर कोई कोयल हमें तसव्वुर में कूकती सुनाई पड़ती है। हम तड़प उठते हैं कि कैसे हम बीते दिनों को जिंदा कर लें और लता दीदी की मीठी, प्यारी आवाज को हमेशा-हमेशा के लिए पांचवें दशक में ठहरा दें।

जानते हैं ऐसा नहीं होगा। पर चलिए अब तड़पने-तरसने का ही मजा ले लें। यह भी तो एक दौलत है। बेरहम वक्त के हाथों नातवान (कमजोर) बनाए गए इंसानों की। एक बात ओर गौर करें लता और हेमंत के युगल गीत हमारे हिन्दी सिनेमा की अमूल्य धरोहर हैं। इनमें आपको अच्छी कविता मिलती है। शांत, निर्मल और कर्णप्रिय संगीत मिलता है।

इन तमाम गीतों को परिवार के साथ बेखटके सुना जा सकता है। इन्हें सुनने के बाद शीतल निर्झर के तले नहाने का एहसास होता है। उल्लेखनीय विशेषता यह है कि स्वयं हेमंत दा व्यक्तिगत जीवन में इतने शालीन, सुसंस्कृत और मर्यादावान व्यक्ति थे कि उनके गीतों में वही सात्विकता आई। आप लता-हेमंत के चंद डूएट्स याद कीजिए। एक ऐसा रास्ता याद आएगा, जहां यहां से वहां तक फूल ही फूल हों और सुबह की शीतल मंदवाही पवन में हिरण-हिरणी का कोई जोड़ा दूब चर रहा हो।

कुछ गीत बतौर मिसाल पेश हैं-'आ नील गगन तले, प्यार हम करें/ नैन से नैन नाही मिलाओ/ छिपा लो आंचल में यूं प्यार मेरा जैसे मंदिर में लौ दिये की/ मुझे तुम जो मिल गए जहान मिल गया/ तुम्ही मेरे मीत हो, तुम्ही मेरी प्रीत हो/ बहारों से पूछो नजारों से पूछो/ ये झूमते नजारे/ चंदन का पलना रेश्म की डोरी/ हल्के-हल्के चलो सांवरे/ नींद न मुझको आए दिल मेरा घबराए वगैरह।

सूची और भी आगे तक जाती है। कहने का आशय यह है कि लता-हेमंत के युगल गीत महज सिनेमाई नगमे नहीं हैं। वे हमारी आत्मा को भले खयालों से भरते हैं। मित्र कंचन चौबे, हरदा सही कहते हैं- 'यार, सही दोस्तों की जगह तो अब पुराना फिल्म संगीत ही भरता है। 'जिंदगी कितनी खूबसूरत है, आइए आपकी जरूरत है' सुन लो शाम संवर जाएगी।'

आलोच्य गीत आपका सुना है। यह सन्‌ 56 के साल आया था। इसे मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा था और धुन तथा संगीत से स्वयं हेमंत दा ने सजाया था। अपने जमाने में यह गाना खूब चला था। गौर करने लायक बात यह है कि सैर-सपाटे के मूड को दर्शाने के लिए क्योंकि माउथ आर्गन माकूल पड़ता है संगीतकार ने उसको ही प्रमुख बनाकर गीत कम्पोज किया है।

इतनी समझ और बारीकी अब कम इस्तेमाल होती है। लगे हाथ हम यह भी न भूलें कि गाना बी.आर. चोपड़ा साहब की फिल्म का था। अच्छी कथा के साथ-साथ सुमधुर और उद्देश्यपूर्ण गाने देने के लिए उनका बैनर विख्यात रहा है। परदे पर यह गीत सुनील दत्त और मीना कुमारी पर आया था। फिल्म 'एक ही रास्ता' विधवा-विवाह जैसे बोल्ड विषय पर आधारित थी और अशोक कुमार ने इसमें मर्मस्पर्शी अभिनय किया था।

संग्रहकर्ताओं की डायरी के लिए गीत की शब्द रचना-हेमंत व लता (साथ-साथ)-
सांवले सलोने आये दिन बहार के,
झूमते नजारे झूमे रंग डार के,
नदी किनारे कोयल पुकारे,
आया जमाना गाओ गीत प्यार के (दो बार)

लता- झूम के पवन देखो चली चली प्यार के नशे में खिली कली-कली (2)
हेमंत- फूलों के दर से ये भंवरा पुकारे (2)
आए दीवाने तेरे इंतजार के (दोनों मिलकर मुखड़ा फिर से गाते हैं)

लता- डोलती घटा के संग डोले जिया,
सामने पपीहा बोले पिया-पिया (2)
हेमंत- ऋतु रंगीली बोले करके इशारे (2)
छेड़ो फसाने दिले बेकरार के
(दोनों मुखड़ा फिर से, दो बार और गीत समाप्त)

गौर कीजिए, सारी कविता आल्हाद के वातावरण को सिरजती है। गूंगे शब्द जहां तक दृश्य खड़ा कर सकते हैं, उस हद तक कलम को पहुंचाने में मजरूह साहब ने खासी मेहनत की है। आगे संगीत और गायन जहां तक अर्थ और उसके रंग को ले जा सकते हैं हेमंत कुमार बतौर संगीतकार उस हद तक धुन और साजों को ले जाते हैं। उनकी सुपरिचित मेंडोलिन यहां खुशियाली का समां बखूबी रचती है।

यानी यहां से वहां तक सब कुछ चुस्त, समझ और ईमान से भरा हुआ। ऐसे 'सुसंस्कृत' गीत अब कहां बनते हैं। सोचिए, अपना बुढ़ापा हमारे बच्चे किन गीतों को गुनगुनाकर काट सकेंगे। उनकी लता, उनके मजरूह, उनके अनिल विश्वास कहां हैं।-

जवाब में कोई आवाज नहीं आती!
जगा ले जाएं रात भर, वो महफिलें कहां
तेरा 'असीर' अब सरे-शाम सो जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi