Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

जाग दर्दे-इश्‍क़ जाग... दिल को बेक़रार कर...

हमें फॉलो करें जाग दर्दे-इश्‍क़ जाग... दिल को बेक़रार कर...
- सुशोभित सक्तावत 
 
सन् 1951 में आई फिल्‍म 'अनारकली' का गीत है यह। चितलकर के संगीत से सजी उस फिल्‍म ने तब ज़माना लूट लिया था और अनारकली की भूमिका निभाने वाली बीना राय तब पूरे मुल्‍क के दिलो-दिमाग़ पर छा गई थीं। विलायत तक उन्‍हीं का हल्‍ला। वैसा क़हर तो बाद में 'मुग़ले-आज़म' में अनारकली की अमर भूमिका निभाने वाली मधुबाला ने भी नहीं बरपाया था। के. आसिफ़ की वह फिल्‍म 1951 की इस अनगढ़ फिल्‍म का कहीं परिष्‍कृत संस्‍करण थी, और मधुबाला भी बीना राय की तुलना में कहीं भावप्रवण अभिनेत्री थीं, लेकिन दर्शकों के मन पर अनारकली की छवि की जो पहली अमिट छाप बनी, वह बीना राय की ही थी।
 
'अनारकली' सही मायनों में एक 'म्‍यूजिकल हिट' थी। एक से बढ़कर एक गाने और लगभग सभी लता के। 'मुझसे मत पूछ मेरे इश्‍क़ में क्‍या रक्‍खा है', 'आजा मेरी बरबाद मुहब्‍बत के सहारे', 'दुआ कर ग़मे-दिल', 'जिंदगी प्‍यार की दो-चार घड़ी होती है', 'मोहब्‍बत ऐसी धड़कन है', और सबसे बढ़कर, 'ये जिंदगी उसी की है/जो किसी का हो गया/प्‍यार ही में खो गया।' वास्‍तव में यह फिल्‍म लता की आमद की औपचारिक घोषणा थी। यह कि संगीत के फलक पर एक ऐसा सितारा उगा है, जिसकी आभा अब सदियों तक क्षीण नहीं होने वाली। यह फिल्‍म लता द्वारा अपनी आवाज़ के बूते जीते गए असंख्‍य साम्राज्‍यों में से पहला बड़ा सूबा था।
 
'जाग दर्दे-इश्‍क़ जाग।' हेमंत कुमार और लता का दोगाना है यह। राग बागेश्री (ठाट काफ़ी) में निबद्ध एक अनूठी गुंथी हुई-सी गझिन धुन। गुड़ की चाशनी में भीगे कंठ ही इस गीत को गा सकते हैं। यह सही मायनों में एक 'पक्‍का गाना' है। हेमंत कुमार की गाढ़ी खरजदार आवाज़ अपने स्‍वाभाविक बांग्‍ला उच्‍चारण के साथ हमें भोर के झुटपुटों की याद दिलाती है। गहरी तल्‍लीन निद्रा में डूबा हुआ-सा स्‍वर। वे पूरे समय इस गीत को मंद्रसप्‍तक में गाते हैं। 
 
सितार की एक सधी हुई करवट के बाद गीत का पुरोवाक् प्रारंभ होता है। और, पहले अंतरे से लता का आलाप है। वे जैसे विद्युल्‍लता की तरह गीत में प्रवेश करती हैं। सहसा, जैसे वज्रपात होता है और हम हतप्रभ रह जाते हैं। एक अलौकिक कंठ-स्‍वर किस तरह के चमत्‍कार करने में सक्षम है, यह जानना हो तो इस गीत में हेमंत कुमार के मननशील उपोद्घात के बाद लता की आमद भर सुन लीजिए। 
 
सन् इक्‍यावन की लता। किशोरियों का-सा स्‍वर। एक विशेष नादमय मराठी उच्‍चार। ईश्‍वर का स्‍पर्श सही मायनों में अगर किसी एक मानुषी-स्‍वर को मिला है, तो वे निश्चित ही लता ही हैं।
 
लता गाती हैं : 'किसको सुनाऊं दास्‍तां, किसको दिखाऊं दिल के दाग़/जाऊं कहां के दूर तक जलता नहीं कोई चराग़/राख बन चुकी है आग।' और तब लगता है कि जैसे दुनिया-आलम और कुछ नहीं, बस बरबाद मोहब्‍बत का सोग़ है। के राख के रेगिस्‍तान हर तरफ़ फैले हुए हैं और रह-रहकर धुंआ-सा उठता है। इसी बिंदु पर हेमंत का आत्‍म-विश्‍वस्‍त स्‍वर बढ़त लेता है, जिसने मानो वेदना के भाव को अपने भीतर पूरी तरह आत्‍मसात कर लिया हो। मानो हिदायत देते हुए वे गाते हैं : 'दिल को बेक़रार कर/छेड़ के आंसुओं का राग/जाग दर्दे-इश्‍क़ जाग।' यह दर्दे-इश्‍क़ का आवाहन है, इनवोकेशन है। 
 
ज़ख्‍़म अगर हमारी रूह के फूल हैं तो यह उन्‍हें हमेशा खिलाए रखने की चेष्‍टा है। सहसा रिल्‍के याद आते हैं। 'मेलंकली' का आवाहन करने वाला कीट्स याद आता है। यह गीत उस फ़ानी मिजाज़ की उपज है, जिसने अभी सुखवाद और प्रयोजनमूलकताओं के विभ्रमों से ख़ुद को बचाए रक्‍खा है। वो मिजाज़ तो अब कमोबेश खेत रहा, पर यह गीत मौजूद है। और जब तक यह गीत मौजूद है, वजूद की छाती में एक रक्‍तरंजित फूल की तरह, तब तक क़ायनाती सोग़ है, अफ़सोसों का उजाला है, और दर्दे-इश्‍क़ है। हमेशा जागा हुआ, भोर के किसी सितारे की तरह।
 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi