Festival Posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

किसी का दर्द मिल सके, तो ले उधार...

Advertiesment
हमें फॉलो करें गीतगंगा

अजातशत्रु

इस गीत को पढ़ना या सुनना ऐसा है, जैसे चाँदनी रात में, नए कालीन पर, मेहंदी लगे पाँव में हरा काँटा चुभ जाए।


ND
आज जब रिश्ते मर चले हैं, दिल में प्रेम और वफा का टोटा हो गया है, मतलबपरस्ती अपने शबाब पर है और हर आदमी के लिए दूसरा आदमी मर चुका है... आज जब सब तरफ अंधेरा है, कदम-कदम पर तनहाई है, बाजार में घूमते डर है कि सड़क पर कहीं गिर पड़े तो कोई अस्पताल पहुँचाएगा या नहीं। लाश के खीसे में नाम-पते का कॉर्ड मिल जाए... तो कोई अजनबी घर फोन करेगा या नहीं?...

ऐसे तरह-तरह के अंदेशों में और रोज डूबते जा रहे दिल के दौर में, तब पुराने गीत सुनना बड़ा भला लगता है, जिनमें इंसानियत की आवाज हो। रिश्तों को जिंदा रखने पर जोर हो। और अजनबीयत की दमघोट तन्हाई को नकारकर अपनापे की खुली हवा के शीतल झोंके हों! ऐसा ही मुकेश का एक मधुर गीत जब कानों में पड़ता है और उस पर कातर राज कपूर की प्रेमभरी एक्टिंग याद आती है तो मन कुछ हल्का हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे दंगाग्रस्त बस्ती में शाम को मंदिर की घंटियाँ सुन लीं और मस्जिद की दीवार से पीठ टिकाकर सो लिए।

यह गीत फिल्म अनाड़ी का है, जो सन्‌ 1959 में आई थी। निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी थे। वे राज के स्वभाव और लोकमानस में उनकी छवि के स्वरूप से अच्छी तरह से वाकिफ थे। इसीलिए उन्होंने राज पर सोहता हुआ एक माकूल गीत लिखवाया और उन्हीं पर फिल्मबंद किया। परदे पर राजकपूर इसे सड़क पर तफरीह करते हुए, नाचते हुए, कूदते हुए और झूमते हुए गाते हैं। यह मॉडर्न सूफी का एक जोगीवाला फेरा ही है।

शैलेन्द्र ने इस गीत को जितनी कोमलता और सादगी से लिखा है, वह अद्भुत है। लफ्जों की अटूट लड़ियों के पीछे लयात्मक अंतर-संगीत है, जैसे झील पर कोई तितली थिरकती हुई ठंडक में बही जा रही है। इस गीत को पढ़ना और सुनना ऐसा है, जैसे चाँदनी रात में, नए कालीन पर, मेहंदी भरे पाँव में, हरा काँटा चुभ जाए। पलक पर ओस के कण को तौलता है यह गीत।

लीजिए गीत पढ़िए और उसमें बिखरी हुई इंसानियत की पँखुड़ियों को चुनकर आँखों से लगाइए।

किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार,
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार,
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार-
जीना इसी का नाम है।

माना अपनी जेब से फकीर हैं,
फिर भी यारों दिल के हम अमीर हैं,
मिटे जो प्यार के लिए वो जिंदगी, जले बहार के लिए वो जिंदगी,
किसी को हो न हो, हमें तो एतबार- जीना इसी का नाम है।

रिश्ता दिल से दिल के एतबार का, जिंदा हमीं से नाम प्यार का,
कि मरके भी किसी को याद आएँगे, किसी के आँसुओं पे मुस्कराएँगे,
कहेगा फूल हर कली से बार-बार- जीना इसी का नाम है

विश्वास ही नहीं होता कि कभी ऐसा जमाना था। लोग ऐसा सोचते थे। जीवन का सुख उन्हें दूसरों का दुःख मिटाने में नजर आता था। पर हकीकत यही है। अभी वह कल ही की बात है। जमाना इतनी तेजी से चंद पिछले सालों में गिरा है। ऐसे में मुकेश का निर्मल, शांत एवं कोमल गायन/ शंकर-जयकिशन का नाजुक और ईथरियल संगीत/ गीत की मार्चिंग सांग वाली बेतकल्लुफ धुन/ मद्धिम आवाज के सॉफ्ट वाद्य/ और प्रेमल राजकपूर की भोलीभाली, बेलौस एक्टिंग... चिढ़ी हुई इंद्रियों को मिल जाए तो नब्ज-नाड़ियों को आराम मिलता है और हवा के बिछौने पर अभागा जिस्म सो जाता है।

यह ऐसा है जैसे रेत के कणों के बीच अंधे को सूखने के लिए मोगरे के ताजे फूल मिल जाएं। खुशी होती है कि बेरहम, बेझिझक, 'ब्रुटलाइजेशन' (पाशविकीकरण) के इस उजड्ड दौर में कुछ फूल की छड़ियाँ भी हैं, जो हमारे जमीर को जगाती हैं और आसपास फुलवारी देखना सिखाती हैं।

उजाड़ मैदानों में उम्मीद अभी बनी है
कि तंग गुफाओं में अभी रोशनी है।
ऐ अतीत, तुझे प्रणाम! ऐ माजी, तुझे सलाम!

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi