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रूप तुम्हारा आँखों से पी लूँ

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अजातशत्रु

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परमात्मा की इस असीम, वैविध्य से भरी, दुनिया में जो कुछ भी प्यारा, दिलकश और खूबसूरत है, उनमें से एक यकीनन यह प्रणय गीत भी है। इसके माधुर्य का जवाब नहीं। जैसे चंदा चलते-चलते रुक जाए, दरिया का पानी बहते-बहते थम जाये, रात ढलते-ढलते महक उठे, और आकाश में ऊँघते बादल मुस्करा उठें।

हिन्दी फिल्म संसार में अगर उत्तम दस प्रेम गीत (लव सांग) छाँटे जाएँ, तो इसे सबसे ऊपर रखना होगा। ऐसी मिठास के साथ सधे बहाव को लिए यह धीरे-धीरे बहता है कि तारे जमीन की ओर खिंच आते हैं। इसे सुनने के बाद लंबी नींद सो जाने को जी करता है- क्योंकि इसके कैफ के बाद उसी दुनिया में जीना मुँह का जायका खराब करना है।

मन्ना दा का सबसे उत्तम गीत जानकारों की नजर में 'पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई' माना जाता है। वहाँ सुर के संतुलन, भाव की गहराई और स्वर के कसाव का जवाब नहीं। पर उन्ही मन्ना दा का यह गीत सुन लीजिए। मान जाएँगे कि उस बंगाली गायक ने यहाँ ज्यादा तल्लीनता और सुर की पकड़ दिखाई है। इस तरह स्वर को साधकर गाना जाना बिरले का ही काम है। गीत इंदीवर ने लिखा था और धुन अजीत मर्चेंट ने बनाई थी।

सन्‌ 61 के साल का गीत है। विडंबना यह कि मन्नाडे का यह महान गीत मारधाड़ की सी ग्रेड फिल्म में आया था और परदे पर इसे कभी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे अधिक शिक्षित, तलवारबाजी में माहिर और आखिर में पागल हो जाने वाले दक्षिण भारतीय अभिनेता रंजन के गाया था। जिस नायिका के रुप की शान में यह कसीदा उन्होंने पढ़ा था, उसका नाम ज्योति था और वह एक गुमनाम अभिनेत्री थी। बाय दि वे, अजीत मर्चेंट वही हैं जिन्होंने फिल्म 'चैलेंज' में 'मैं तो हो गई रे तेरे लिए बदनाम' जैसी आशा की मीठी ठुमरी दी थी।

सुमन चौरसिया से इंदौर में जब पहली बार मुलाकात हुई थी, तो इस गीत का रिकार्ड सुनाकर उन्होंने दावे से कहा था- 'बताइये, क्या आप इस पर 'गीत-गंगा' लिखने से अपने को रोक पायेंगे? मैं तब गीत के सम्मोहन के बाहर नहीं आ पाया था। सुस्थिर हुआ तो कहा- 'सुमनजी, आज आपने बिलाशक एक बेहतरीन चीज सुनाई है। इस पर टिप्पणी लिखे बिना मुझे चैन नहीं मिलेगा।'

देखिये प्रसंग वर्षों बाद बना- क्योंकि अब तक मैं इस गीत के लिए भाषा, उक्ति वैचित्र्य और मौके की सनक खोज रहा था। इस रात बात बन गई। निवेदन है कि फिल्म-संगीत के प्रेमी इस सायंकालीन या रात्रिकालीन मेलडी को जरुर सुनें और इसकी चाशनी में डूब जायें। गीत क्या है। दिलवालों के लिए आफत है। खुद रफी साहब ने कहा था- 'इस गीत में मैं मन्नाजी की सुर-साधना और अपील को नहीं पहुँच सकता। यह अंत तक मेरे अजीज दोस्त का गीत है। याद करें, शायद धुन आ जाए। गीत के बोल इस तरह हैं-

रूप तुम्हारा आँखों से पी लूँ,
कह दो अगर तुम मरके भी जी लूँ

मरके भी जी लूँ - 2
आँखों से छलके तेरी अमृत की धारा,
तेरा साथ गोरी मुझ को जीवन से प्यारा,
मिले दोनों हम तुम जैसे, लहर से किनारा,
रूप तुम्हारा आँखों से पी लूँ,
कह दो अगर तुम मरके भी जी लूँ,
मरके भी जी लूँ
निगाहें झुका के फिर, जरा मुस्करा दो,
काँपते लबों से दिल की कहानी सुना दो,
क्या है तुम्हारे दिल में, हमें भी बता दो,
रूप तुम्हारा आँखों से पी लूँ,
कह दो अगर तुम मरके भी जी लूँ

मरके भी जी लूँ।

गीत तो खैर बला का खूबसूरत है। पर जो बात हैरान करती है, वह मन्ना दा की आवाज का बेलेंस है। जैसे परखनली में तूफान कैद हो गया और कायनात धीरे-धीरे सरकने लगी। आसमान में जैसे बादलों के ढूह खिसकते हैं, वैसे ही ठंडक का यह पहाड़ दिल की तराई पर रेंगता है। इसे सुनकर... दुनिया की तमाम बदसूरती मिट जाती है और काँटे भले मालूम पड़ने लगते हैं। मन्ना दा को अमर कर देने के लिए यह अकेला गीत काफी है। आप सुनें तो सही इसे।

फिल्म थी- 'सपेरा'। सन्‌ 1961। चलते-चलते आपके दामन के लिए यह फूल-
आँखे नहीं हैं चेहरे पे तेरे फकीर के,
दो ठीकरे हैं भीख के दीदार के लिए।

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