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उनकी हस्ती क्या मिटेगी

तस्लीम

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उनकी हस्ती क्या मिटेगी

कभी किसी तूफान से

मुश्किलों में जो खड़े हैं

समुद्र में चट्टान से।

हर घड़ी हर सोच अपनी

काम अपने काम से

जीत गए जंग वे सिपाही

जो रहे अनजान से।

संकल्प की लाठी उठाओ

ऐसे साँपों के खिलाफ

लगते हैं जो देखने में

हर तरह इंसान से।

बाप की दौलत पर ऐश

करने को तो खूब कर

पर तरसता जाएगा

अपनी इक पहचान से।

पीठ पीछे की बुराई

जान ले अच्छी नहीं

उठकर आया है नहीं

कभी कोई श्मशान से

मंदिरों को फूँक दो

मस्जिदों को दो उजाड़

आदमी का हो भला गर

ऐसे ही श्रमदान से।

साभार : स्वर्ग विभा

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