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श्याम सखा 'श्याम'
जब मैं छोटा बच्चा था
सपनों का गुलदस्ता था
आज नुमाइश भर हूँ मैं
पहले जाने क्या-क्या था
अब तो यह भी याद नहीं
कोई कितना अपना था
आज खड़े हैं महल जहाँ
कल जंगल का रस्ता था
नाजुक कन्धों पर लटका
भारी भरकम बस्ता था
वो पगडंडी गई कहाँ
जिस पर आदम चलता था
तुझको पाने की खातिर
उफ़ दर-दर मैं भटका था
दर-दर मैं तो भटका था।