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जियो उस प्यार में जो मैंने तुम्हें दिया है
अज्ञेय की प्रेम कविता
जियो उस प्यार में जो मैंने तुम्हें दिया है,उस दु:ख में नहीं जिसेबेझिझक मैंने पिया है।उस गान में जियोजो मैंने तुम्हें सुनाया है,उस आह में नहीं जिसेमैंने तुमसे छिपाया है।उस द्वार से गुजरोजो मैंने तुम्हारे लिए खोला है,उस अंधकार से नहींजिसकी गहराई कोबार-बार मैंने तुम्हारी रक्षा की भावना से टटोला है।वह छादन तुम्हारा घर होजिसे मैं असीसों से बुनता हूं, बुनूंगा;वे कांटे-गोखरू तो मेरे हैंजिन्हें मैं राह से चुनता हूं, चुनूंगा।वह पथ तुम्हारा होजिसे मैं तुम्हारे हित बनाता हूं, बनाता रहूंगा;मैं जो रोड़ा हूं, उसे हथौड़े से तोड़-तोड़मैं जो कारीगर हूं, करीने सेसंवारता-सजाता हूं, सजाता रहूंगा।सागर किनारे तकतुम्हें पहुंचाने काउदार उद्यम ही मेरा हो;फिर वहां जो लहर हो, तारा हो,सोन-परी हो, अरुण सवेरा हो,वह सब, ओ मेरे वर्ग!तुम्हारा हो, तुम्हारा हो, तुम्हारा हो।