शिवनारायण उपाध्याय
तुम कोमल तन किन्तु प्रबल मन वाली एक कहानी थी
तुम थी धैर्य दया की प्रतिमा,अरिगण मध्य भवानी थी
चंचल चपला सी थी तुम तो,दूर विपद घन होते थे
तुम नारी थी फिर भी तुममें, नरता के दर्शन होते थे
राजमहल के सुख पाकर भी, कुटिया को अपनाने वाली
प्रजा पुत्र सम पालन करके ,मंदिर घाट बनाने वाली
तुम योजक थी नई योजना से हर्षित जन-जन होते थे
तुम नारी थी फिर भी तुममें, नरता के दर्शन होते थे।
तुम्हें सत्य था प्यारा निशिदिन शिवपूजा में रत रहती थी
सादा जीवन जीने वाली उच्च विचारों में बहती थी
मानवता की पथप्रदर्शक थी सुरभित सब चमन होते थे
तुम नारी थी फिर भी तुममें, नरता के दर्शन होते थे।
(लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर की 213वीं पुण्यतिथि पर विशेष)