तुम, सोना मत नदी
नदी श्रृंखला की कविताएँ-6
प्रेमशंकर रघुवंशी
नदी
सोना मत!
तुम्हारे सोते ही
सो जाएँगे कछार
वनस्पतियों में
फैल जाएँगी महामारी
नदी सोना मत!
तुम्हारे सोते ही
भ्रष्ट होंगे
मौसम
और ऋतुओं पर
नहीं रहेगा किसी का वश!
तुम, सोना मत
मत सोना, नदी!!