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नीति अग्निहोत्री
फिर उगे हैं नए पल
उसी वृक्ष की डाली पर
जिसे प्यार और अपनत्व
के जल से सींचा था
उन नए पलों से झरेगा अब
मानवता का प्यार पराग
कब तक उस वृक्ष पर खिले
फूलों के दिल की पुकार को
अनसुना करते रहेंगे भँवरे चाहत के
कब तक रूकी रहेगी प्रीत की गुंजन
कब तक थमी रहेगी मधुरता की धड़कन
अब तो पूरे वृक्ष में दौड़ेगा नया आनंद रस
जो नई सुखद अनुभूतियों की रागिनी से
परिपूर्ण होकर छलकेगा विश्वमय होकर
नए जीवन का संदेश देगा धरा को ।