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पानी में घिरे हुए लोग

केदारनाथ सिंह की चर्चित रचना

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ज़िंदगी और मौत का सच प्राकृतिक आपदाओं के दौरान एक अजीब सी थरथराहट के साथ उभरकर सामने आता है। भयावह मौत कभी बहुत पास से किसी अनजान की तरह गुजर जाती है और मानवता स्तब्ध रह जाती है। और कभी अपने आगोश में इतनी सहजता से जीवन समेट लेती है कि बरसों वे चीत्कार कानों में गूँजती रहती है। लेकिन जीवन नहीं हारता क्योंकि उसका तो दूसरा नाम ही गति है। कोसी में बाढ़ ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया। ऐसे ही किसी सिहरे हुए क्षण में सुविख्यात कवि केदारनाथ सिंह की कलम से एक मार्मिक रचना झरी थी। यह कविता मौजूदा दौर में बाढ़ से संबंधित सरोकारों को मजबूती से उठाती है। वेबदुनिया के पाठकों के लिए प्रस्तुत है यह प्रासंगिक रचना।

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पानी में घिरे हुए लो
प्रार्थना नहीं करत
वे पूरे विश्वास से देखते हैं पानी क
और एक दिन
बिना किसी सूचना क
खच्चर बैल या भैंस की पीठ पर
घर-असबाब लादक
चल देते हैं कहीं औ

यह कितना अद्भुत है
कि बाढ़ चाहे जितनी भयानक ह
उन्हें पानी मे
थोड़ी-सी जगह
जरूर मिल जाती ह
थोड़ी-सी धू
थोड़ा-सा आसमा
फिर वे गाड़ देते हैं खम्ब
तान देते हैं बोर
उलझा देते हैं
मूंज की रस्सियाँ और टा
पानी में घिरे हुए लो
अपने साथ ले आते हैं पुआल की गंध

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वे ले आते हैं आम की गुठलिया
खाली टी
भुने हुए चन
वे ले आते हैं
चिलम और आ
फिर बह जाते हैं उनके मवेश
उनकी पूजा की घंटी बह जाती ह
बह जाती है
महावीर जी की आदमकद मूर्ति
घरों की कच्ची दीवारे
दीवारों पर बने हुए हाथी-घोड़
फूल-पत्तपाट-पटोर
सब बह जाते है
मगर पानी में घिरे हुए लो
शिकायत नहीं करत
वे हर कीमत पर
अपनी चिलम के छेद में
कहीं न कहीं बचा रखते है
थोड़ी-सी आ
फिर डूब जाता है सूर
कहीं से आती ह
पानी पर तैरती हुई
लोगों के बोलने की तेज आवाजे
कहीं से उठता है धुआ
पेड़ों पर मँडराता हु
और पानी में घिरे हुए लो
हो जाते हैं बेचै
वे जला देते है
एक टुटही लालटे
टाँग देते हैं किसी ऊँचे बाँस पर
ताकि उनके होने की खबर
पानी के पार तक पहुँचती रह
फिर उस मद्धिम रोशनी में
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पानी की आँखों में
आँखें डाले हु
वे रात-भर खड़े रहते है
पानी के सामन
पानी की तरफ
पानी कखिलाफ

सिर्फ उनके अंद
अरार की तरह
हर बार कुछ टूटता ह
हर बार पानी में कुछ गिरता ह
छपाक........छपाक.......!

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