तुमने रखा मेरी गुलाबी हथेली पर एक जलता हुआ शब्द-अंगारा और कहा कि चीखना मत बस यही सच है रिश्ता हमारा।
तुमने चाहा कि तुम्हारे शब्द की जलती हुई चटकन को भूल तुम्हें एक मुस्कान का शीतल छींटा दूँ पर कैसे करती मैं वह, जब हथेली में दर्द के हरे छाले निकल आए। और मेरे सुलगते सवालों के तुम्हारे तीखे जवाब चलकर आए।
रिश्तों की दहलीज पर आज फिर मैंने सब कुछ हारा, बस, एक शब्द तुम्हारा और खेल खत्म हुआ सारा।