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मैं तुम्हें पुकारता हूँ

प्रेम कविता

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रवींद्र व्यास

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मैं तुम्हें पुकारता हूँ

मैं तुम्हें पुकारता हूँ

और मेरी आवाज सूनेपन के जंगल में

पागलों की तरह भटकती रहती है

मैं तुम्हें पुकारता हूँ

औऱ मेरी आवाज छटपटाती हुई

एक नदी में डूब जाती है

मैं तुम्हें पुकारता हूँ

और मेरी आवाज खिले फूल को चूमकर

एक गहरी खाई में खो जाती है

मैं तुम्हे पुकारता हूँ

मैं तुम्हें पुकारता हूँ

मैं तुम्हें पुकारता हूँ

पर तुम सात समंदर पार हँसती हुई

एक चट्टान पर बैठी गुनगुना रही हो

मैं तुम्हें पुकारता हूँ

और मेरा गला रूंधा हुआ है

तुम्हें बार-बार पुकारते हुए एक दिन

मेरे आवाज रुक जाएगी

और मैं हमेशा हमेशा के लिए मौन हो जाऊँगा

तुम आओगी तो मुझे नहीं पाओगी

मेरे मौन में खिला हुआ

एक छोटा सा सुंदर फूल पाओगी।

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