लेटी रही नदी
नदी श्रृंखला की कविताएँ -2
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प्रेमशंकर रघुवंशी
रातभर
लेटी रही नदी
रातभर -
जागते रहे घाट
रात भर -
तारे लगाते रहे गश्त
रात भर हवा संग -
बजाते रहे पेड़ सीटियाँ
लेकिन सभी की -
नजरों से ओझल
रातभर -
नदी की सेज पर पसरा रहा कोहरा
और सूरज के आने तक -
निश्चिंत होकर लेटी रही नदी !!
साभार: पहल