कविता के कलेजे में रख दिए हैं मैंने प्राण और उम्र की तमाम चिंताएं सपनों की चमकीली बोतल में डाल बहा दी हैं समन्दर में मैं दूर से देखता हूं समन्दर से सीपियां बटोरते बच्चों को मेह की चादर लपेटे देखता हूं बादलों को घरौंदों को बचाते हुए चलता हूं समन्दर किनारे बूढ़े कदमों की सावधानियों को उन्हीं की नजर से देखता हूं लौटते हुए पैरों के निशान देखता हूं तो चप्पलों के ब्रांड दीखते हैं धुंधलाए हुए से मैं बारिश को उनमें घुलता हुआ देखता हूं खेतों की मेढ़ों पर देखता हूं खून और पसीने के मिले-जुले धब्बे फसलों की उदास आंखों में तीखी मृत्यु-गंध देखता हूं मेरे हाथों की लकीरों में वह तुर्शी बस गई है गहरे मेरी सिगरेट इन दिनों सल्फास की तरह गंधाती है मैं अपने कंधों पर तुम्हारी उदासी की परछाइयां उठाए चलता हूं
तुम देखती हो मुझे जैसे समन्दर देखता है नीला आसमान
मैं बाजरे के खेत से अपने हिस्से की गरमी और धान के खेत से तुम्हारे हिस्से की नमी लिए लौटा हूं मेरी चप्पलों में समन्दर किनारे की रेत है और आंखों में मेढ़ों के उदास धब्बे
मेरे झोले में कविताएं नहीं कुछ सीपियां हैं और कुछ बालियां समय के किसी उच्छिष्ट की तरह उठा लाया हूं इन्हें तुम्हारे लिए
यह हमारा प्रेम है बालियों की तरह खिलखिलाता यह हमारा प्रेम है सीपियों-सा शांत यह हमारे प्रेम की गंध है इन दिनों... तीखी
मैं लिखता हूं कविता जैसे तुम चूमती हो मेरा माथा...