विवेकरंजन श्रीवास्तव
आपाधापी में जीवन की,
दुर्गम राहों पर मंजिल की
मुश्किल हर आसान बनाकर
हम जानते हैं हँसना भी,
बालों की रूखी उलझन की
यादें कैसी? ये बचपन की
हर गम अपने संग भुलाकर
हम जानते हैं हँसना भी,
अनगढ़ भाषा है चितवन की
चेहरे पर है छवि, बस मन की
हर अभाव को छना बताकर
हम जानते हैं हँसना भी,
चिंता चिता है कठिन समय की
बोझिल बातें जीवन दर्शन की
ढूँढ खुशी के पल बतियाकर
हम जानते हैं हँसना भी।