धूल-धूसरित मटमैला पत्र बरसों पुरानी संदूक से कुछ इस तरह निकला जैसे चंदन के चूर्ण में लिपटा एक भीना-भीना पल,
हल्के गुलाबी पन्नों पर अंकित गोल-गोल अक्षर ऐसे लगे जैसे माणिक और पुखराज दमक उठें हो मेरी जिंदगी में।
खत में रची हर इबारत जो तुमने मेरे नाम लिखी थी, रातरानी की महकती शाख-सी मुझ पर ही झुक आई है।
आज जब तुम कहीं नहीं हो, यह मुड़ा-तुड़ा खत मेरे सूखे अहसासों में एक रेशम बूँद बनकर मुस्कुराया है।
आज तुम याद नहीं आए, तुम्हारा प्यार भी नहीं, तुम्हारी आँखें भी नहीं पर वह क्षण बरबस ही उमड़ आया है, मेरे दिल के कच्चे कोने में वही सोलहवाँ साल शर्माया है,