जफर गोरखपुरी
मर के जी उट्ठूँ किसी दिन,सनसनी तारी करूँ
तेरी आँखों के हवाले से खबर जारी करूँ
वो कभी मिल जाए मुझको अपनी साँसों के करीब
होंठ भी हिलने न दूँ और गुफ्तगू सारी करूँ
तू भी अपना और गमे दुनिया भी घर का एक फर्ज
किसका दिल रक्खू मियाँ किसकी दिल-आजारी करूँ
जाने ऐसी कौन सी बेनाम मजबूरी है ये
उससे नाखुश रहके भी उसकी तरफदारी करूँ
पी रहा हूँ मैं अभी एहसान उसका बूँद-बूँद
तिश्नगी मिट जाए तो बादल से गद्दारी करूँ
इत्तिफाकन बेवकूफों के कबीले में 'जफर'
मैं भी एक चालाक हूँ फिर क्यों न सरदारी करूँ।