अटल बिहारी वाजपेयी की कविता : अभी चला दो कदम कारवां साथी छूट गया
हाथों की हल्दी है पीली
पैरों की मेहंदी कुछ गीली
पलक झपकने से पहले ही सपना टूट गया
दीप बुझाया रची दिवाली
लेकिन कटी न मावस काली
व्यर्थ हुआ आवाहन स्वर्ण सबेरा रूठ गया।
सपना टूट गया।
नियति नटी की लीला न्यारी
सब कुछ स्वाहा की तैयारी
अभी चला दो कदम कारवां साथी छूट गया।
सपना टूट गया।
* 1979 में जनता पार्टी के टूटने के बाद की मन:स्थिति में रचित।