सुनो सिद्धार्थ
धरा साक्षी है
तुम्हारे जाने के बाद
मैं भी कुशा पर ही सोई
त्यागा हर ऐश्वर्य
हर कामना
पहना पीत वस्त्र..
भिक्षा हेतु तुम्हारी तरह ही भटकी, तपी
भेद बस इतना कि
तुमने बाह्य द्वार खटखटाए
और मैं तपती भटकती रही भीतर..
इस कठिन तप और वेदना के उपरांत
तुम बुद्ध हुए, दीप्त हुए
फिर मैं क्यों इस दीपक के नीचे का अंधकार मात्र रही..