- प्रो.सी.बी. श्रीवास्तव 'विदग्ध'
हे जग की पालनहार मात जगदंबे
हम आये तुम्हारे द्वार मात जगदंबे
तुम आदि शक्ति इस जग की मंगलकारी
तीनों लोकों में महिमा बड़ी तुम्हारी , इस मन की सुनो पुकार मात जगदंबे
देवों का दल दनुजों से था जब हारा
असुरों को माँ तुमने रण में संहारा , तव करुणा अपरम्पार मात जगदंबे
चलता सारा संसार तुम्हारी दम से
माँ क्षमा करो सब भूल हुई जो हम से , तुम जीवन की आधार मात जगदंबे
हर जन को जग में भटकाती है माया
बच पाया वह जो शरण तुम्हारी है पाया , माया मय है संसार मात जगदंबे
माँ डूब रही नित भवसागर में नैया
है दूर किनारा कोई नहीं खिवैया , संकट से करो उबार मात जगदंबे
सद् बुद्धि शांति सुख दो मां जन जीवन को
हे जग जननी सद्भाव स्नेह दो मन को , बस इतनी ही मनुहार मात जगदंबे