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मैं पुराना नोट हूँ .......

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डॉ. रामकृष्ण सिंगी

हाँ, मैं पुराना नोट हूँ, कहिये! मेरा क्या कुसूर है। 
जो कल तक थे मेरे मुरीद, आज मुझसे दूर हैं।।
कल तक तो मैं था "गाँधी छाप", आज तो बस कागज़ हूँ। 
कल तक था जिनका मैं होनहार 
आज उनकी ही संतान नाज़ायज़ हूँ।। 
कल तक था मैं दस तालों में, आज गंगाजल में हूँ। 
कचरा घर में, संडासों में या अग्नि की झल में हूँ।।
देखो! ये रिश्वती, काले धनपति कैसे तेवर बदलते हैं। 
उजालों के दुश्मन हैं सब, बस अंधेरों में मचलते हैं।।
 
अरसे से बंद रहा मैं इनकी काल कोठरियों में। 
कोई एक मुक्तिदाता शायद उभरा है सदियों में। 
तिस पर भी गाली पर उतरे हैं निहित स्वार्थों के पंडे। 
और चुनावोन्मुख वे दल जिनके नाकारा हुए झंडे-डंडे।।
 
आतंकी बंदूकों से भी छिन गई गोलियाँ सब। 
हर दुआ में गाली की बौछारें करने लगा पाकी मजहब।।
मित्रों देशहित की रक्षा में मैं तो असमय मर जाऊंगा। 
पर देश की अर्थव्यवस्था की गंदगी साफ कर जाऊंगा।। 

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