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हिन्दी कविता : गांव की याद में...

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राकेशधर द्विवेदी

शहर से लगा हुआ मेरा
प्यारा-सा गांव
गांव से जुड़ी हुई है
स्मृतियों की छांव
 

 
 
 
छांव में छुपी हुई
अनेक कहनाइयां
जिसने तोड़ी हमेशा
जिंदगी की ‍वीरानियां
 
वह बचपन के झूले
वह गांव के मेले
वह ट्रैक्टर की सवारी
वह पुरानी बैलगाड़ी
 
वह पुराना बरगद का पेड़
वह खेत की मेढ़
वह चिड़ियों का चहकना
वह फूलों का महकना
 
पर धीरे-धीरे गांव
बहुमंजिली इमारत में
तब्दील हो गया
वह कोलाहल और
गाड़ियों के शोर से
लबरेज हो गया
 
शेष रह गया केवल
गाड़ियों का धुआं
जिसे देख परेशान
हर व्यक्ति हुआ
 
सूरज अब जमीं के
पास आ गया
भौतिकता का नशा
हर व्यक्ति पर छा गया
 
आदमी को आदमी से
न मिलने की है फुरसत
भाईचारा और इंसानियत
यहां कर रहे रुखसत
 
इस नए जंगल से
कोई अब तो निकाले
हे परमात्मा मुझे फिर से
मेरे पुराने गांव से मिला दे।


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