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हिन्दी कविता : सबेरा हुआ

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अशोक बाबू माहौर

उठो, 
सबेरा हुआ
चांद छुप गया
रंग बदल गया
भानु दस्तक देने लगा
दरवाजे पर
चिड़ियों की चहचाहट
मन गुदगुदाने लगी
बैठी काकी चबूतरे पर
समझाती
कुछ बतियाती 
देखो पेड़ों ने भी
आंखें खोली
अब तो जागो बिटिया
सुबह हुई
नए दिन की शुरुआत हुई। 

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