आ गए तुम
द्वार खुला है
अंदर आ जाओ..
पर तनिक ठहरो
देहरी पर पड़े पायदान पर
अपना अहंकार झाड़ आना..
मधुमालती लिपटी है मुंडेर से
अपनी नाराज़गी वहींं उड़ेल आना ..
तुलसी के क्यारे में
मन की चटकन चढ़ा आना..
अपनी व्यस्ततायें बाहर खूंटी पर ही टांग देना
जूतों संग हर नकारात्मकता उतार आना..
बाहर किलोलते बच्चों से
थोड़ी शरारत माँग लाना..
वो गुलाब के गमले में मुस्कान लगी है
तोड़ कर पहन आना..
लाओ अपनी उलझने मुझे थमा दो
तुम्हारी थकान पर मनुहारों का पंखा झल दूं..
देखो शाम बिछाई है मैंने
सूरज क्षितिज पर बांधा है
लाली छिड़की है नभ पर..
प्रेम और विश्वास की मद्धम आंच पर चाय बनाई है
घूंट घूंट पीना..
सुनो इतना मुश्किल भी नहीं हैं जीना....
(यह कविता भोपाल निवासी निधि सक्सेना ने लिखी है। सोशल मीडिया पर इसे सुप्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा की रचना बता कर चलाया जा रहा है।)