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हिन्दी कविता : नजदीक

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संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'

यूं लब थरथराने लगे 
तुम जो मेरे नजदीक आए 
 
महकती खुशबू जो महका गई 
तुम जो मेरे नजदीक आए 
 
नजरें ढूंढती रही हर दम तुम्हें   
तुम जो मेरे नजदीक आए
प्रेम को बोल भी न बोल पाए 
तुम जो मेरे नजदीक आए
 
इजहार तो हो न सका प्रेम का 
तुम जो मेरे नजदीक आए
 
प्रेम के ढाई अक्षर हुए मौन 
तुम जो मेरे नजदीक आए
 
कागज में अंकित शब्द खो से गए 
तुम जो मेरे नजदीक आए
 
नींद भी अपना रास्ता भूल गई 
तुम जो मेरे नजदीक आए
 
कोहरे में छुपा चेहरा जब देखा 
तुम जो मेरे नजदीक आए
 
अंधेरों ने मांगा उजाला रौशनी देने 
तुम जो मेरे नजदीक आए
 
प्रेम रोग की दवा देने 
तुम जो मेरे नजदीक आए

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