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हिन्दी कविता : सुबह

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संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'

सुप्रभात बतलाता तालाब को 
अलविदा करता रात को 
 
खिले कमल और 
सूरज की किरणों की लालिमा 
लगती चुनर पहनी हो
फिजाओं ने गुलाबी 
खिलते कमल लगते 
तालाब के नीर ने 
लगाई हो जैसे 
पैरों में महावार
 
भोर का तारा 
छुप गया उषा के आंचल 
पंछी कलरव,
मां की मीठी पुकार 
 
सच अब तो सुबह हो गई
श्रम के पांव चलने लगे 
अपने निर्धारित लक्ष्य 
और हर दिन की तरह सूरज देता  गया 
धरा पर ऊर्जा 

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