पेड़ों की पत्तियां झड़ रही
मद्धम हवा के झोकों से
चिड़िया विस्मित चहक रही
वसंत तो आया नहीं
आमों पर मोर फूल की मद्धम खुशबू
टेसू से हो रहे पहाड़ के गाल सुर्ख
पहाड़ अपनी वेदना किसे बताए,
वो बता नहीं पा रहा पेड़ का दर्द
लोग समझेंगे बेवजह राईं का पर्वत
पहाड़ ने पेड़ों की पत्तियों को समझाया
मैं हूं तो तुम हो
तुम ही तो कर रही वसंत का अभिवादन
गिरी नहीं तुम बिछ गई हो
और आने वाली नव कोपलें जो हैं तुम्हारी वंशज
कर रही वसंत के आने का इंतजार
कोयल के मीठे राग अलाप से
लग रहा वादन हो जैसे शहनाई का
गुंजायमान हो रही वादियों में
गुम हुआ पहाड़ का दर्द
जो खुद अपने सूनेपन को
टेसू की चादर से ढाक रहा
कुछ समय के लिए अपना तन