Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

हिन्दी कविता : तुम ऐसी तो न थीं...

हमें फॉलो करें हिन्दी कविता : तुम ऐसी तो न थीं...
webdunia

सुशील कुमार शर्मा

कविता तुम ऐसी तो न थीं
उत्ताल तरंगित तुम्हारी हंसी
लगता था जैसे झरना
निर्झर निर्भय बहता हो।
 
शब्दों के संप्रेषण इतने
कुंद तो न थे स्थिर सतही
तुम्हारे शब्द फिजाओं में तैरकर
सीधे हृदय में अंकित होते थे।
 
तुम पास होती थी तो गुलाब की खुशबू तैरती थी वातावरण में
अचानक सब शून्य कैसे हो गया
क्यों मूक-बधिर-सी तुम एकाकी हो
क्यों मन से भाव झरना बंद हो गए।
 
क्यों स्थिर किंकर्तव्यविमूढ़-सी
तुम बहती रहती हो
कविता और नदी कभी अपना स्वभाव नहीं बदलती
नदी बहती है कल-कल सबके लिए।
 
कविता स्वच्छंद विचरती है सबके मन में
उल्लसित भाव लिए सबको खुश करती
कविता तुम मूक मत बनो
कुछ कहो, कुछ सुनो।
 
उतरो सबके दिलों में निर्मल जल धार बन
मत बदलो अपने स्वभाव को
कविता तुम ऐसी तो न थी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

गर्मी की छुट्टियों के लिए, अमेरिका के 5 आकर्षक स्थान