होली को वो आएंगे।
पकड़ कलाई झकझोरेंगे,
गालों में रंग लगाएंगे।
लाल रंग भरकर डालेंगे,
करेंगे नीला-पीला।
मैं जोगिनिया बनूंगी उनकी,
वे हरेंगे मेरी पीड़ा।
बाहों में फिर भरकर मुझको,
खड़े-खड़े मुस्काएंगे।
पकड़ कलाई झकझोरेंगे,
गालों में रंग लगाएंगे।
लुका-छुपी थोड़ी-सी होगी,
कुछ हो जाएगी बात।
मौका पाय के मैं पूछूंगी,
लाओगे कब बारात।
हंसी बिखेरेंगे वे मुझ पर,
फिर मुझको अपनाएंगे।
पकड़ कलाई झकझोरेंगे,
गालों में रंग लगाएंगे।
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होली में घर को आना सजन...
फागुन में करके रखी जतन
होली में घर को आना सजन।
लाची-लवांगी का बीरा लगाऊं,
हाथों से मेरे खाना सजन,
होली में घर को आना सजन।
सोने की थाली में जेवना परोसूं,
रुचि रच भोग लगाना सजन,
होली में घर को आना सजन।
झंझा रे गेंडुवा गंगा जल पानी,
धीरे-धीरे सब पी जाना सजन,
होली में घर को आना सजन।
सब रंगों से सजी है थाली,
सब रंगों से लहलाना सजन,
होली में घर को आना सजन।
फागुन मस्त महीना आयो,
आके मन बहलाना सजन,
होली में घर को आना सजन।
धीरज धरा अटारी चढ़ि के,
खेलय आउब होली।
डर लागत है तोहरे बाप से,
मार दियय न गोली।
माई तोहरे अच्छी बाटी,
सीधी अहा खूब भौजी।
छोटकी तोहरी सुन्दर बाटै,
मोटकी बा जरझौसी।
भइया तोहरे मस्त मौलाना,
सूरति तोहरी भोली।
डर लागत है तोहरे बाप से,
मार दियय न गोली।
खोल के राखूं खिड़की आपन,
बांध के राखू रसरी।
पकड़ के ऊपर उही से चढ़बै,
जाए जैसे बिजली।
पाय अंधेरिया रंग लगाउब,
धीरे बोलूं बोली।
डर लागत है तोहरे बाप से,
मार दियय न गोली।
रंग चढ़े जब खिले जवानी,
महकय लागे बगिया।
हमरी याद म सोय न पवबू,
बिना लगाए तकिया।
बन दूल्हा बरात जब लाउब,
सुन्दर लागे जोड़ी।
डर लागत है तोहरे बाप से,