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हिन्दी कविता : लालबत्तीशाही का अंत

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डॉ. रामकृष्ण सिंगी

हट गई कारों के मस्तक पर से लाल बत्तियाँ,
लुट गया सुहाग, हो गई सारी शान दफ़न। 
बेचारा लालबत्तीवाला वीआईपी एक झटके में,
सड़क पर तो हो ही गया अन्य कारों वालों जैसा आमजन।।
 
छिन गई महाभारत के अश्वत्थामा के सिर की मणि,
मोदी/योगी (कृष्ण-अर्जुन) बने सबके दुश्मन। 
नूर उतर गया बत्ती/सायरन वाले पदों का,
होने लगी मन में बेहद खीज, तड़पन।।
 
सपने सब के हो गए धराशायी,
लालबत्ती युक्त कोई पद पाने के। 
आमजन के धन से चलती गाड़ी, 
जलती लाल बत्ती से,
उन्हीं आमजनों पर रौब ज़माने के।। 
 
सामन्तशाही प्रवृत्तियों का प्रतीक चिन्ह,
लालबत्ती दफ़न हो गई अब काफी गहरे। 
लांछन है प्रजातंत्र में ये बत्ती/ सायरन,
पद विहीन लोगों पर लगे खर्चीले 'जेड' पहरे।।
 
पद के भूखों को जमीन पर लाने की,
मोदीजी की यह सार्थक कवायद है। 
आगे-आगे देखिए होता है क्या,
सामन्तवादी सोच के खिलाफ,
जम्हूरियत की यह इब्तदा-ए-बगावत है।। 
(जम्हूरियत= प्रजातंत्र, इब्तदा= प्रारम्भ, बगावत= विद्रोह)

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